Sunday, February 04, 2007

नालायक होने का सुख

इक्कीसवीं सदी के मुख में सबसे आगे प्रवेश करने की प्रतिस्पर्धा मे जहॉँ लोगों की भीड बेचैन हैरान परेशान होकर तेजी से भागी चली जा रही है। वहीं जब कोइ व्यक्ति तनाव मुक्त और प्रसन्न दिखाई देता है तो आश्चर्य के साथ - साथ उसके प्रति ईर्ष्या भी अनायास उत्पन्न हो जाती है। भला इतनी समस्याओंए इतने खतरों और इतनी निराशाओं के बीच आदमी तनाव हीन कैंसे रह सकता है जो व्यक्ति प्रात: समाचार पत्र का मुख पृष्ठ पढ़कर राजनीतिज्ञों के गैर जिम्मेदार वक्तव्य सामूहिक हत्या या आत्महत्या के समाचार चोरी और बलात्कार की खबरें बतलाकर वह सामान्य ज्ञान में अग्रणी होने का प्रमाण-पत्र भी हासिल कर लेता है ।विवाह के हर एक समारोह में द्वाराचार से लेकर पाणिगृहण तक उपस्थित रहकर बारातियों से अधिक अकेले ही सिगरेट पी लेता है। घरधनी को छोड़कर सभी लोग उसे समाज सेवक मानते हैं। विपन्नबुद्धि से जब हमने उसके सुखी जीवन का राज जानना चाहा तो उसने रहस्योद्घाटन के अन्दाज में मुस्कराते हुए कहा- देखो भाई ! आज के जमाने में जो जितना लायक व्यक्ति है उतना ही दुखी और जो जितना नालायक है उतना ही सुखी है। अब आप को ही देख लीजिये आप कवि हैं; लेखक है; संगीतज्ञ भी हैं दो तीन भाषाओं के ज्ञाता भी हैं। इसीलिये सैंकड़ों लोग आपके पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं । मन को चैन नहीं शरीर को आराम नहीं और हमेशा दुखी। और एक हमें देखिये. हम पूरी तरह नालायक हैं. हमें कोई माँगने पर भी सेवा का अवसर नहीं देता इसलिये हम चैन की वंशी बजाते हुए डोल रहे हैं। बचपन से ही मुझे नालायक की उपाधि मिल चुकी है। घर में आये मेहमानों के सामने ही मैंने अपने पिताजी से बताया कि सेठ ने चाय की पत्ती देने से मना कर दिया है क्यों कि आपने पुरानी उधारी चुकता नहीं की है। बस फिर क्या था... पिताजी ने मुझे महानालायक की उपाधि से अलंकृत कर दिया और घर में निर्देश दे दिया कि इस नालायक से कोई काम न करवाया जाये। तभी से मैं घर के कामकाज से मुक्त होकर मस्त खेलता रहता था। मेरी यह ख्याति पिताजी के मार्फत दूर दूर तक फैल गयी थी। वे मेरा परिचय देते वक्त नालायक शब्द कभी नहीं भूलते थे। उस समय मुझे बुरा लगता था; क्योंकि तब मैं नहीं जानता था कि नालायकियत ही सुख का मूल होती है।गांव के प्रौढ़ पड़ोसी और स्कूल के शिक्षक मेरे नालायकपने के कारण दूसरे बच्चों की तरह बेगार नहीं करवाते थे। फलस्वरूप विद्यार्थी जीवन आनन्द से बीत गया। नौकरी में आया तब मेरी समझ में भली भांति आ चुका था। इसीलिये प्रारंभ से ही मैंने अपने आपको नालायक सिद्ध करना शुरू कर दिया। जो भी काम मिलता उसे इस तरह करता कि काम करवाने वाले वर्षों तक पछिताते रहते और कहते...किस नालायक से पाला पड़ा है....। एक बार हमारे साहब ने हमें विदेशी नश्ल का कुत्ते का पिल्ला लेने भेजा हमने पांच हजार रुपये में सुअर का पिल्ला लाकर साहब के घर बांध दिया और उन्हें समझा दिया कि यह नई विशेष प्रजाति का कुत्ता है जो बड़ा होकर बहुत भव्य और खूंखार दिखेगा। बेचारे साहब कई दिनों तक कुत्ते के भरोसे सुअर के बच्चे की सेवा करते रहे। कुछ दिनों बाद उसके आहार.विहार के लक्षणों से जब उन्हें असलियत का पता चला तो उन्होंने मुझे शासकीय स्तर पर महानालायक का अवार्ड दे डाला। तभी से मुझसे साहब लोग निजी कार्य करवाने से डरने लगे। एक बार हमारे साहब ने मेरी ड्यूटी रेस्ट हाउस में लगाई। बोले विपन्नबुद्धि! अपना उल्लू का पट्ठा बड़ा साहब आ रहा है तुम उसकी व्यवस्था करना ...। हमने कहा ठीक है । जब बड़े साहब रेस्ट हाउस में पधारे तो हमने उनसे पूछा- साहब आप तो अकेले ही दिख रहे हैं? हमारे साहब तो कह रहे थे ...काई उल्लू का पट्ठा भी आ रहा है। फिर क्या था बड़े साहब ने छोटे साहब की फोन पर क्या खिचायी की ...... और मुझे ड्यूटी से मुक्त कर दिया। तब से मैं पूरे डिपार्टमेन्ट में अत्यन्त नालायक के रूप में जाना जाने लगा और फिर कभी किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिये मुझे कभी याद नहीं किया गया।मैं आराम से शासकीय समस्त सुविधाओं का उपयोग करते हुए ताश खेल रहा हूं। अब रही बात घर की तो घर में अपने आप को नालायक सिद्ध करना थोड़ा कठिन किन्तु हम्माली से बचने का एकमात्र उपाय होता है। इसके लिये मैं पहले ही से सतर्क था। शादी के समय अपने सास ससुर को रोते हुए देखकर मैंने उन्हें समझाया था कि आप बिल्कुल चिन्ता न करें आपकी बच्ची वैसे ही मेरी बच्ची । सुनकर मेरी पत्नी और उसके माता-पिता रोना-धोना छोड़कर मेरी नालायकियत पर चिन्ता करने लगे थे । पत्नी के हृदय में मेरे नालायक होने की छबि प्रारम्भ से ही बन गई थी । रही सही कसर सड़ी-गली सब्जियां मंहगे भाव में लाकर और किराने की दूकान से ग्राहकों द्वारा लौटाया गया सामान लाकर पूरी कर दी थी ।इस तरह मैं नम्बर एक का नालायक पति सिद्ध हो गया । परिणाम स्वरूप यह सारी हम्माली पत्नी ने स्वयं अपने अधिकार क्षेत्र में ले ली। अब इससे ज्यादा और सुख क्या होता है? मेरी तरह नालायक प्रजाति के लोग हर क्षेत्र में पाये जाते हैं। यह प्रजाति दिनों दिन अपनी संख्या में वृद्धि कर रही है और बिना कुछ काम किये आराम से सुखी जीवन व्यतीत कर रही है। इसलिये मैं आप सब से कहता हूं कि .. यदि सुखी होना है तो नालायक बन जाइये।
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-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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