Monday, February 05, 2007

चिरोंजीलाल सरपंच बने

चिरोंजी लाल जी विपन्नबुद्धि के बचपन के मित्र हैं। विपन्नबुद्धि हमेशा उनके विषय में चिन्तित रहता था, कहता था....... क्या होगा इसका..?....और इसके बच्चों का ? चिरोंजी लाल गाँव के सर्वश्रेष्ठ निठल्ले आदमियों में जाने जाते थे। बच्चों की संख्या बढ़ाने के अलावा उन्होंने जीवन में कोई रचनात्मक कार्य नहीं किया था, हालांकि जाने अनजाने उनसे विध्वंसक कार्य जरूर हो जाया करते थे। कोई काम न होने से वे दिन भर इधर-उधर घूमते हुए गाँव भर के गोपनीय समाचारों में कुछ समाचार मिलाकर प्रचारित-प्रसारित करते रहते थे। परिणाम स्वरूप लड़ाई-झगड़ा आम बात थी। इसलिए सारे गाँव के लोग- "काम के न काज के ढाई मन अनाज के " रूप में उनका परिचय देते थे। कुछ लोग उन्हें नारद जी के नाम से भी पुकारते थे। यहाँ तक कि उनकी पत्नी के भी उनके वारे में स्पष्ट विचार थे, वे कहती थीं- "कछू बने न धरे ऊसई आधे-आधे होउत हैं।" सलाह देने में वे माहिर थे। मारपीट और झगड़ों के प्रकरणों में अक्सर दोनों पार्टियों को बिना माँगे सलाह देना अपना कर्तव्य समझते थे, क्योंकि झगड़े का मुख्य कारण तो वे ही होते थे। दण्ड संहिता की गूढ़ धाराएँ, जिन्हें वकील तक ठीक से नहीं समझ पाते, उन्हें कंठस्थ थीं। गालियाँ देने के साथ कपड़े फाड़ने में कौन सी धारा लगती है......आदि आदि समझाते हुए उन्हें परमानन्द की अनुभूति होती थी। शवयात्रा और मृत्युभोज में उनकी उपस्थिति अवश्य दर्ज होती थी, ठठरी बाँधने से लेकर कपाल क्रिया तक की सारी विधियों के विशेषज्ञ होने के कारण इन अवसरों पर लोग उन्हें अवश्य याद करते थे। "हम हैं न" ये उनका तकिया कलाम था, किसी भी समस्या के समाधान में "हम हैं न" कहने की उनकी आदत थी, हालांकि इस तकिया कलाम के प्रयोग से एक बार पिट भी चुके थे, क्योंकि एक मृत व्यक्ति की पत्नी को समझाते हुए वे बोल पड़े थे- "चिन्ता मत करो......हम हैं न" ।
आज विपन्नबुद्धि चिरोंजीलाल की ओर से निश्चित हो गया था, क्योंकि वे "घूरे के भी दिन फिरते हैं" मुहावरे को चरितार्थ करते हुए गाँव के सरपंच बन गए थे। अब वे ही गाँव के भाग्यविधाता हो गए हैं। भला हो हमारी सरकार का जिसमें त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली लागू करके "दिन दूने रात चौगुने" बढ़ते हुए निठल्लों को रोजगार का अवसर प्रदान कर दिया है। भगवान की कृपा से हमारी चुनाव प्रणाली भी इतनी ब्रह्मज्ञान की तरह इन्द्रियों से परे है कि कब, कौन, कैसे? जीत जाता है? अच्छे अच्छे विशेषज्ञ भी नहीं समझ पाते। मतदाता भी "सियाराम मय सब जग जानी" की भावना से डाकू को सांसद, हत्यारे को विधायक, किन्नर को महापौर और चिरोंजी लाल जैसे निठल्ले को सरपंच चुन लेते हैं और फिर रोते रहते हैं। शायद इसीलिये जनता को जनार्दन कहते हैं। जनता जनार्दन गधे और घोड़े को समान दृष्टि से देखते हुए सभी को समान अवसर प्रदान करती है, किन्तु आश्चर्य की बात है कि किसी को भी चुने, काम सब एक सा ही करते हैं। पद पर बैठते ही रद्दी से रद्दी आदमी रातोंरात महान बन जाता है। मीडियारूपी पारस के संयोग से सड़ा गला लोहा भी सोने के माफिक चमकने लगता है।
अब चूँकि चिरोंजी लाल भी सरपंच के पद पर बैठ गए हैं सो मीडिया भी उनके आस-पास घूमने लगा है। पत्रकार चिरोंजी लाल के जन्म से लेकर आज तक का इतिहास गढ़ने में लग गए, कोई उन्हें जमीन से जुड़ा नेता बताता, कोई गरीबों का हमदर्द कहता, कोई उन्हें दलितों का मसीहा सिद्ध करता। चिरोंजी लाल के नामकरण के सम्बन्ध में कुछ लोगों का कहना है कि उनके पिता श्री ने सन्तानोत्पत्ति की औसत आयु गुजर जाने के बाद किसी की कृपा से एक मात्र पुत्रोत्पत्ति की खुशी से जीवन में पहली बार चिरोंजी बाँटी थी, इसीलिये इनका नाम चिरोंजी लाल पड़ा। ज्योतिषी लोग उनकी कुण्डली बताकर उसमें राजयोग प्रबल होने की भविष्य वाणी करते हुए भविष्य में विश्व नेता बनने की संभावना व्यक्त करने लगे। सभी को उनके सारे दुर्गुण सद्गुण नजर आने लगे। चिरोंजी लाल जी में भी एकदम गजब का आत्मविश्वास आ गया। उनके हृदय रूपी सूखे कुएँ में पता नहीं कहाँ से विवेक रूपी पानी की मोटी झिर निकल पड़ी कि अचानक ये कबड्डी से लेकर वेदान्त जैसे गहन विषयों पर धाराप्रवाह बोलने लगे। प्रत्येक समारोह की अध्यक्षता करना तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो गया है। राष्ट्रीय नीतियों की व्याख्या, भारतीय अर्थ व्यवस्था में सुधार, विश्व व्यापार, संगठन, उदारीकरण आदि पर उनके भाषण सुन सुनकर जनता "चिरोंजी लाल संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है।" के नारे लगाती है। शिक्षा के लोक व्यापीकरण, रोजगार गारण्टी योजना, गरीबी उन्मूलन आदि विषयों पर उनके विचार समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर आने लगे । चारों ओर "चिरोंजी लाल जिन्दाबाद" के नारे लगने लगे........और देखते ही देखते एक और महान नेता आपके सामने हैं चिरोंजी लाल।
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