Monday, February 05, 2007

किन्नर विजय जुलूस

किन्नर विजय जुलूस
वैसे तो जुलूस निकलना अपने देश में कोई आश्चर्य की बात नहीं है, किन्तुु यह जुलूस कुछ अलग ही ढँग का होने के कारण मेरा ध्यान आकर्षित कर रहा था। एक खुली जीप में अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सजे धजे, फूल मालाओं से लदे किन्नर विजय श्री की मुद्रा में हाथ हिला-हिलाकर जनता को धन्यवाद दे रहे थे। उनके आगे-आगे एक विशाल जन समूह तालियाँ बजा-बजाकर नाच रहा था। विपन्न बुद्धि इस जुलूस का मार्ग दर्शक था, वह ढोलक बजाते हुए गा रहा था-"मेरे अँगने में अब तुम्हारा ही काम है, जो हें नाम वाले सभी तो बदनाम हैं।" बीच-बीच में रुक-रुककर लगाये जाने वाले नारे भी कुछ कम चित्ताकर्षक नहीं थे-
देश का नेता कैसा हो?.....शबनम मौसी जैसा हो।
किन्नर तुम संघर्ष करो........हम तुम्हारे साथ हैं।
सफल नहीं नर-नारी है.......अब किन्नर की बारी है।
नर-नारी सब भ्रष्टाचारी........किन्नर अब अपनी लाचारी।
किन्नर अपना नेता होगा........भाई भतीजावाद न होगा।-
जोशपूर्ण नारों के साथ रोषपूर्ण ढँग से हवा में लहराते हाथों से स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि वे शवनम मौसी की जीत पर इतने प्रसन्न नहीं हैं, बल्कि उन दो महान दिग्गजों को चारो खाने चित्त कर राजनैतिक पार्टियों के गालों पर तमाचा मार रहे हों, जो जन-भावनाओं से खिलवाड़ करते हुये गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। शबनम मौसी के चेहरे पर भी गजब का आत्मविश्वास झलक रहा था। वे भीड़ के ऊपर अपनी पहनी हुईं मालाएँ फेंक कर आशीर्वाद की मुद्रा में वरदहस्त दिखाकर मुस्करा रहीं थीं, मानो कह रही होंचिन्ता मत करो अब सब ठीक हो जायेगा।मैंने विपन्न बुद्धि को बुलाया और पूछा- "विपन्न बुद्धि! तुम इतने खुश हो रहे हो? जो किन्नरों की तरह कमर मटका-मटकाकर नाच रहे हो?"वह बोला- "देखते नहीं हो.....शबनम मौसी विधायक का चुनाव जीत गईं हैं।""जीत गईं हैं तो क्या हुआ?"- मैंने उपेक्षाभाव से कहा। भारतीय चुनाव में कब कौन जीत या हार जाए, कहा नहीं जा सकता।"नहीं नहीं शबनम मौसी की जीत कोई अप्रत्याशित जीत नहीं है.......यह तो प्रजातंत्र की जड़े गहरी हो जाने की सूचना है।"- विपनन बुद्धि ने बड़ी गंभीर मुद्रा बनाते हुए हमें समझाया।हमने कहा कि विपन्न बुद्धि! सच सच बताओ कि दो राष्ट्रीय दलों के अनुभवी नेताओं के होते हुए तुमने शबनम मौसी को क्यों चुना?.....विपन्न बुद्धि ने कमर से ढोलक छोड़ते हुये कहा देखो शबनम मौसी को हम लोगों ने बहुत सोच समझकर चुना है। इसके पाँच कारण हैं-
पहला कारण है कि वे वास्तविक अल्पसंख्यक हैं। हमारे देश में अल्पसंख्यकों के नाम पर कई लोग सरकारी लाभ लेते हुए बहुसंख्यक होते जा रहे हैं। जब कि प्राकृतिक रूप से मनुष्यों में कुल तीन ही जातियाँ हैं- स्त्री, पुरुष और किन्नर।......स्त्री और पुरुष दोनों ही बहुसंख्यक हैं, किन्तु किन्नर अल्पसंख्यक हैं। उनका भी समुचित प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
दूसरा कारण है, उनका सचमुच का सेक्युलर होना। हमारे सारे नेता सेक्युलर सेक्युलर चिल्लाते तो बहुत हैं पर राजनीति में धर्म का इस्तेमाल कर धर्मों के बीच वैमनस्य बनाने में उनकी बड़ी भूमिका होती है, किन्तु किन्नर सही मायने में धर्म निरपेक्ष होते हैं। वे हिन्दू-मुसलमान में कोई भेद नहीं करते। सभी के आँगन में प्रेम पूर्वक नाचते-गाते हैं। सभी की खुशियों में बराबर के भागीदार होते हैं।
तीसरा कारण है भाई-भतीजावाद। हमारे देश में अभी तक जितने भ्रष्टाचार के या अपराधों के प्रकरण सामने आये हैं, उनमें कहीं न कहीं नेताओं के भाई भतीजों का हाथ होना पाया गया है। जितना ऊधम मंत्री नहीं करते उतना उनके लड़के करते हैं। इसलिये ' न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी` ......शबनम मौसी का न कोई भाई न भतीजा और उनसे भी कोई खतरा नहीं। भाई भतीजावाद समाप्त।
चौथा कारण है, सुरक्षा खर्च की बचत। अभी देखा जा रहा है कि हमारी आधी पुलिस तो नेताओं एवं उनके रिश्तेदारों की सुरक्षा में ही लगी रहती है। इसी पर करोड़ों का खर्च होता है। शबनम मौसी को किसी सुरक्षा गार्ड की जरूरत नहीं है।
पाँचवां कारण है- भ्रष्टाचार का समूल विनाश। कहते हैं कि एक बार भ्रष्टाचार ने बड़ी तपस्या करके लक्ष्मी जी को प्रसन्न किया और अजर अमर होने का वरदान माँगा। लक्ष्मी जी ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुये यह वरदान दिया- ' हे वत्स! तुम्हें न कोई माता मार सकेगी और न पिता, न पत्नी, गृहस्थ और न ही ब्रह्मचारी, न विधवा और न विधुर.....यहाँ तक कि दुनिया की न कोई स्त्री मार सकेगी और न पुरुष। तब से भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते हुये निर्भय रूप से विचरण कर रहा है। उसे समाप्त करने के लिये ही अब हमें किन्नरों का सहारा लेना होगा। इतिहास गवाह है कि जो काम बड़े बड़े शूरवीर नहीं कर सके उसे किन्नरों ने कर दिखाया है। महाभारत में भी युद्ध जीतने के लिये किन्नर शिखण्डी को सेनापति बनाना पड़ा था, तभी विश्व विजेता भीष्म पितामह को परास्त किया जा सका था।

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