Saturday, November 29, 2008

हिंसा

हिंसा

हिंसा ही यदि लक्ष्य हो गया जिस मानव का
पाठ अहिंसा का क्या कभी समझ पाएगा
कर हिंसा स्वीकार अहिंसा व्रत का पालन
हिंसा का ही तो परिपोषण कहलाएगा।
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हिंसा की पीड़ा का अनुभव जिसे नहीं है
वही व्यक्ति तो खुलकर हिंसा कर पाता है
हिंसक मूढ, अहिंसा की भाषा क्या जाने
अपनी ही भाषा में व्यक्ति समझ पाता है।

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नहीं करूँगा हिंसा और न होने दूँगा
ऍसा सच्चा अहिंसार्थ व्रत लेना होगा
हिंसा के जरिए यदि हिंसा कम होती है
व्यापक अर्थ अहिंसा का अब लेना होगा।

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युद्ध


सत्य अहिंसा और शान्ति की रक्षा करने
अगर युद्ध भी होता है तो हो जाने दो
मातृभूमि की मर्यादा की रक्षा में यदि
अपना सब कुछ खोता है तो खो जाने दो
नहीं करेंगे इस पर कोई भी समझौता
महाप्रलय भी होता है तो हो जाने दो।

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डर


दुनिया में जो कौम मौत से डर जाती है
सपने में भी वह सम्मान नहीं पाती है
दीन–हीन श्रीहीन दरिद्र निकम्मी बनकर
अपमानित होकर जीते जी मर जाती है।

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शान्ति प्रस्ताव


शान्ति भंग करने की जिद जिसने ठानी है
उसे शान्ति– प्रस्ताव सरासर बेमानी है
लातों के देवता बात से नहीं मानते
भय बिन होय न प्रीति नीति हमने जानी है।
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-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

3 Comments:

At 12:46 PM, Blogger बोधिसत्व said...

कटारे साहब
कभी आपने वादा किया था कि शरद बिल्लौरे के परिवार वालों से लेकर उनकी कविता पुस्तक सुलभ कराएगें.....कृपया हो सके तो यह काम कर दें....मुझे उन पर एक आवश्यक आलेख लिखना है...आपकी बड़ी कृपा होगी
मेरा मो. नंबर है
0-982021573
आपका
बोधिसत्व

 
At 12:48 PM, Blogger बोधिसत्व said...

और यदि आप उनका नंबर आदि दे सकें तो बडा उपकार होगा....मैं आपको नए साल की शुभ कामनाएँ दे रहा हूँ

 
At 9:15 AM, Blogger कटारे said...

आदरणीय बोधिसत्व जी नमस्कार
मैंने शरद बिल्लौरे के ज्येष्ठ भ्राता शिव अनुज बिल्लौरे से बात की है उन्होंने आप से बात करने की बहुत कोशिश की पर आपका फोन नहीं लगा । आप अपना पता लिख दें तो हम कोरियर से उनका साहित्य भेज देंगे ।आप चाहें तो ९९२६३७९६८१ मो॑ पर बात कर लीजिये ।
कटारे

 

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