Monday, June 25, 2007

फूल खिले अमलताश के

सुनिये

सखि! आये दिन गर्मी तपास के
फूल खिले अमलताश के ।।

कैसो मौसम हो गयो बैरी
काटे कटती नहीं दुपहरी
सूरज बन के बैठो पहरी
मीत लगें घने पेड़ आसपास के।
फूल खिले अमलताश के ।।

कैसी मौसम की मजबूरी
भावे हलुआ खीर न पूरी
रहती हरदम प्यास अधूरी
देह दुबली सी भई बिन प्रयास के।।
फूल खिले अमलताश के ।।

पूरी नींद न होय हमारी
आँखें हो गयीं भारी भारी
कैसे कैसे रात गुजारी
भये सैंयाँ भी ऊपर पचास के।
फूल खिले अमलताश के ।।

1 Comments:

At 7:22 AM, Blogger अनुनाद सिंह said...

अति सुन्दर!!

बहुत अच्छी लगी आपकी रचना!

 

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