Sunday, August 28, 2011

मौसम अभी मचलने वाला है




मौसम अभी मचलने वाला है



सब परिदृश्य बदलने वाला है।



छँटा अंधेरा मुर्गे बोल उठे



सूरज जल्द निकलने वाला है।।



जिसने भी नभ में उड़ने की कोशिश की



जाने क्यों हर शख्श गर्त में चला गया



जिस जिसने भी रामराज्य का नाम लिया



मारीचों की मृगमाया से छला गया



छुपी निशचरी है छाया ग्राही



हनुमत कोई निकलने वाला है।।



अन्धे थे धृतराष्ट्र हो गये बेहरे भी



सुनते नही नहीं पहिचाने चेहरे भी



गान्धारी की आँख बँधी रुई कानों में



हटा लिये सब सत्य न्याय के पेहरे भी



लगता है ये युद्ध महाभारत



और न ज्यादा टलने वाला है।।



सूर्पणखा ने खर दूषण वध करवाया



रावण कुम्भकरण भी फिर मरवाया



कहने भर को राजा बने विभीषण जी



चली सब जगह सूर्पणखा की ही माया



रच डाला सोने का महानगर



धू धूकर अब जलने वाला है।।



चन्दा चमका ले उधार के उजियाले



चमगादड़ जुगनू उलूक भये मतवाले



सब मिलकर के सूरज को धिक्कार रहे



शक्तिमान होने का मन में भ्रम पाले



ग्रहणकाल की बीत गयीं घड़ियां



सूरज आग उगलने वाला है।।



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