Friday, November 26, 2010

कुछ न कुछ तो है

दिखा चाँद पर काला धब्बा
कुछ न कुछ तो है
कालिक हे या गहरा गड्ढ़ा
कुछ न कुछ तो है

कालिख हुई तो सबके काले मुख हो जायेंगे
गड्ढ़ा होगा तो फिर ओंधे मुँह गिर जायेंगे
चन्दा चौथ कलंकी हौआ कुछ न कुछ तो है

सत्य उजागर हो जायेगा रानो मत रानो
छिपा गर्भ में सबको दिखता मानो मत मानो
गुड़िया होगी या फिर गुड्डा कुछ न कुछ तो है

सुबह सुबह क्यों चिल्लाते हैं पूछो मुर्गों से
कड़बे सच को सुनना सीखो बड़े बुजुर्गों से
चीख चीख चिल्लाया बुड्ढ़ा कुछ न कुछ तो है

भ्रष्टाचारी चर्चे उछले कोर्ट कचहरी तक
बोल उठी आसन्दी अन्धी गूंगी बहरी तक
मौन रहे क्यों मौनी बब्बा कुछ न कुछ तो है

शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

1 Comments:

At 5:15 AM, Blogger mahesh said...

कटारे जी आपकी रचना अच्छी लगी और रचनायें कब पढ़ने को मिलेंगीं

 

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