Sunday, July 26, 2009

सुख दुख इस जीवन में

मन से ही उत्पन्न हुए हैं
खो जाते हैं मन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
हो मन के अनुकूल
उसे ही सुख कहते हैं
मन से जो प्रतिकूल
उसे ही दुख कहते हैं
गमनागमन किया करते हैं
इच्छा के वाहन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में
सुख फूलों सा मनमोहक
सुन्दर दिखता है
फिर दुख आता हे तो
काँटों सा चुभता है
एक हंसाता एक रुलाता
क्रमशः मन के वन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
अस्तित्व नहीं है

और किसी का कुछ भी
स्थायित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
मिला न तन धन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

5 Comments:

At 7:42 AM, Blogger संगीता पुरी said...

यथार्थ को चित्रित कर दिया है .. सुख दुख कुछ नहीं .. बस मन की इच्‍छा है !!

 
At 7:58 AM, Blogger ओम आर्य said...

bahut hi sundarata se jiwan ke sach ko bayan kari hai aapane

 
At 8:04 AM, Blogger Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदरत.

 
At 9:03 AM, Blogger समयचक्र said...

बहुत सुन्दर सटीक रचना. बधाई.

 
At 3:05 PM, Blogger Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर..

 

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