Monday, February 05, 2007

कीचड़ उछालना हमारा राष्ट्रीय खेल

कीचड़ उछालना हमारा राष्ट्रीय खेल
कीचड़ उछालना हमारा सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय खेल है। नेता हो या अभिनेता, कलाकार हो या साहित्यकार, चित्रकार हो या पत्रकार, अधिकारी हो या चपरासी, गृहस्थ हो या संन्यासी, श्रमजीवी हो या बुद्धिजीवी, अमीर हो या गरीब कीचड़ उछालने के लिये सदैव एक पैर पर खड़े रहते हैं। कीचड़ उदालने की परम्परा हमारे देख में आदिकाल से निर्विरोध चली आ रही है। जहाँ कहीं किसी को कीचड़ दिखी और सामने कोई साफा सुथरा व्यक्ति दिखा तो फिर कीचड़ उछालने का मोह हम नहीं छोड़ पाते। इस खेल में हमारा देश आज भी अव्बल है। पहले से ही कीचड़ में सने व्यक्ति पर कीचड उछालने में मजा नहीं आता। इसलिए हमें किसी बेदाग, ऊपर से नीचे तक स्वच्छ व्यक्ति की तलाश होती है। कीचड उछालने वाला कीचड उछाल कर एक तरफ हो जाता है फिर काम शुरू होता है उन लोगों का जो पहले से ही कीचड में लथपथ होते हैं और उस साफ सुथरे आदमी को देखकर अपने आप को बदशक्ल मानते हुए ग्लानि का अनुभव कर रहे होते हैं। वे जोर जोर से चिल्लाने लगते हैं! ' देखो वह कितना गन्दा आदमी है.......कितना बदसूरत है....।`जिस पर कीचड उछाल दी जाती है वह गाली बकता है। इसे एक षड़यन्त्र बताता है और भविष्य में कीचड न उछाली जावे इसके लिये कोई व्यवस्था बनाने की बात कहता है, किन्तु उसकी बात कोई नहीं सुनता। कोई नहीं जानना चाहता कि यह कीचड आयी कहाँ से? किसने उछाली? इसका उद्देश्य क्या है? आखिर इससे लाभ क्या हुआ? किसे हुआ? आदि विषयों पर न तो कोई सोचता है और न ही विचार करना चाहता है। सभी गन्दे हैं, सभी बदशक्ल हैं, कोई साफ नहीं है......वस यही सोचकर अपनी हीन भावना से उबरने की कोशिश करते हैं।विपन्न बुद्धि एक बार अपने मित्रों के साथ रेल में सफर कर रहा था । जैसा कि भारतीय रेलों में अक्सर होता ही रहता है। शीट पर बैठने के मामले में एक पहलवान टाइप आदमी से कहासुनी हो गई। पहलवान ने आव देखा न ताव विपन्न बुद्धि को दो तमाचे रसीद कर दिये। उसके मित्रों ने विपरीत परिस्थिति देखते हुए चुप ही रहना ठीक समझा। विपन्न बुद्धि कुछ देर सोचता रहा, फिर अपनी बाँहें चढ़ाकर पहलवान से बोला- देखो मिस्टर! मुझे मारा तो मारा परन्तु मेरे इन मित्रों को हाथ भी लगाया तो मुझसे बुरा कोई न होगा। फिर क्या था दो दो तमाचे मित्रों पर भी जमा दिये। और फिर विपन्न बुद्धि से बोला- 'कर अब क्या करता है।`विपन्न बुद्धि मुस्कराते हुए बोला- भाई साहब! यदि मैं कुछ कर सकता होता तो पहले ही नहीं कर दिया होता?"फिर इन बेचारों को क्यों पिटवाया?" पहलवान ने आश्चर्य से पूछा।विपन्न बुद्धि ने इसका रहस्य खोलते हुए बताया- देखो भाई! मैं अकेला पिटता तो ये लोग हँसी उड़ाते......अब जब सभी पिट गए तो कोई किसी की हँसी क्यों उड़ायेगा? ठीक यही मनोवृि>ा इन कीचड़ उछालने वालों की होती है। रोज रोज के इस कीचड़ उछाल खेल से तंग आकर हमारे प्राचीन बुद्धिजीवियों ने इस खेल के लिये एक निश्चित समयावधि तय करने की कोशिश अवश्य की, किन्तु वे असफल रहे। उन्होंने व्यवस्था दी थी कि होली के समय धुलेंडी से रंग पंचमी तक जो जहाँ चाहे जी भर कीचड़ उछाल ले और "बुरा न मानो होली है" कह दे। इसमें किसी का कोई नुकसान न होगा। और लोगों की कीचड़ उछालने की इच्छा भी पूरी हो जायेगी। इस अवधि में सभी लोग कीचड़मय वातावरण के लिये मानसिक रूप से तैयार रहते हैं। बुद्धिजीवियों के इस प्रतिबन्ध को हमारी प्रेमी जनता ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इतने प्रिय खेल को समय सीमा में बाँधना हमारे मौलिक अधिकार का हनन है।कीचड़ मुख्य रूप से सबसे आवश्यक महाभूत जल और मिट्टी से निर्मित होती है। इसी कीचड़ को सद्भावना पूर्वक शरीर पर लेपन किया जाये तो यह औषधि का भी काम करती है। प्राकृतिक चिकित्सा वाले इसी लेप से बड़े-बड़े रोग दूर कर देते हैं। परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि कीचड़ का उपयोग किया किस उद्देश्य से है? किन्तु ज्यादातर लोग इसका प्रयोग दूसरों को अपने से अधिक गन्दा सिद्ध करने के लिए ही करने में आत्मसुख प्राप्त करने में लगे हैं।अब चूँकि पानी का अभाव होता जा रहा है, और बढ़ते हुए भवन और सड़क निर्माण से मिट्टी भी आसानी से प्राप्त नहीं होती। इसीलिए लोगग अब अधिक धन और समय लगाकर नाना प्रकार की कीचड़ तैयार करने में लगे हैं।विद्वान लोग बौद्धिक कीचड़ तैयार करते हैं। अभी रामचरितमानस के एक प्रवचनकार ने एक दूसरे बड़े विद्वान पर कीचड़ उछालने के लिए अत्यन्त परिश्रमपूर्वक और बहुत सारा धन खर्च करके एक पुस्तक प्रकाशित की है, उसमें अत्यन्त बौद्धिक चतुराई से वक्तव्यों का पोस्टमार्टम करके कीचड़ तैयार कर दी है और सौंप दी है उनके विरोधी प्रवचनकारों को जो उनके सामने अपने को बौना पा रहे थे। अब वे बड़े मजे से लगे हैं कीचड़ उछालने। इसी प्रकार अभी हाल में अमेरिका मूल की लेखिका केथरीन फ्रेंक ने छ: साल तक अथक परिश्रम करके कुछ दिवंगत भारतीय राजनीतिज्ञों पर उछालने के लिए कीचड़ तैयार की है। जिसे ब्रिटिश प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स ने लाखों डालर खर्च करके पुस्तक के रूप में भारत में भेज दी है। शायद उन्हें नहीं मालूम कि भारत में बुरे से बुरे व्यक्ति पर, दिवंगत हो जाने पर कीचड़ उछालना उचित नहीं माना जाता। कीचड़ के मामले में और प्रगति करते हुए पिछले दिनों तहलका डाट कॉम ने भारत के सबसे स्वच्छ आदमी पर उछालने के लिए इलैक्ट्रानिक कीचड़ तैयार की है।लाखों रुपए, बेशकीमती समय और ऊर्जा खर्च करके बनाई गई यह कीचड़ पहले से ही रंगे-पुते उन हुरियारों को सौंप दी है, जो एक स्वच्छ साफ भद्र पुरुष को देख-देख कर इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। अब देखना इस कीचड़ उछाल खेल में वे कितने सक्रिय होते हैं। सारे देश में कीचड़ ही कीचड़ करके रख देंगे।इसलिए कहता हूँ आप भी पीछे मत रहिये, उछाल दीजिये कीचड़।
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