Monday, February 05, 2007

दुनिया के चोर उचक्कों एक हो जाओ

दुनिया के चोर उचक्कों एक हो जाओ
आज मैं पूरे आत्म विश्वास से सारी दुनिया के उन छोटे-बड़े चोर उचक्कों का आह्वान करता हूँ कि, हे दुनिया के चोर उचक्कों एक हो जाओ, और गर्व से कहो 'हम चोर हैं।` अब समय आ गया है कि हम अपनी ताकत पहचाने, हमारी एक महान परम्परा है, एक सार्वभौमिक संस्कृति है। पूर्व हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण, हमारी एक निश्चित कार्य पद्धति है। हमारे साथ आदिकाल से ही तथाकथित सभ्य समाज द्वारा अत्याचार किया जाता रहा है। विश्व के प्रत्येक राष्ट्र में हमारी जाति की अच्छी खासी संख्या है फिर भी हमें तीसरे दर्जे का नागरिक माना जाता है। हमें आज भी अपना व्यवसाय चोरी छुपे करना पड़ रहा है। जहाँ एक ओर विकसित देशों में हमारी प्रगति पर तरह तरह के अवरोध उत्पन्न किये जाते रहे हैं वहीं विकासशील देशों में भी हमारे साथ अमानवीय व्यवहार किया गया है।संसार के सभी देशों ने हमारे एक से एक होनहार प्रतिभावान चोरों को या तो जेलों में कैद कर रखा है या फिर उन्हें पत्थर मारकर अपमानित किया जाता रहा है। कुछ पिछड़े देशों में तो हमारे भाइयों के हाथ काट देने तक के कानून बना रखे हैं।हमारे व्यवसाय का न तो कोई पशिक्षण संस्थान है और न ही किसी यूनिवर्सिटी में कोई व्यावसायिक पाठ्यक्रम है। इसके बाद भी हमारे कर्तव्यनिष्ठ कर्मवीर चोर भाइयों ने हमारा परम्परागत चौरकर्म को नई नई तकनीकि विकसित करके दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते हुए अपनी संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि की है। मैं बड़े गर्व से कहता हूँ कि यदि धर्म निरपेक्ष कहीं कोई है तो वह हमारी जाति ही है। हम चोरी करते समय धर्म, रंग, वर्ग, संप्रदाय आदि में भेदभाव नहीं करते। हमारी भाषा भिन्न हो सकती है, वेशभूषा भी अलग है लेकिन अन्दर से हम सब एक हैं। अनेकता में एकता सच मायने में हमारे समाज में ही देखने को मिलती है। पहले हमारा कार्यक्षेत्र सीमित हुआ करता था किन्तु आवागमन के साधन और सूचना प्रौद्यौगिकी के विस्तार से आज हम अन्तर्राष्ट्री नेटवर्क स्थापित करने में सफल हो गए है। इस तरह 'वसुधैव कुटुम्बकम्` की भावना का परिपालन हमने ही किया है। उक्त विचार चेन्नई में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय चोर महासभा का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित विपन्न बुद्धि ने प्रकट किये। अन्तर्राष्ट्रीय चोर महासंघ की स्थापना की आवश्यकता पर बल देते हुए उसकी स्पष्ट रूपरेखा समझाते हुए उसने कहा- "भाइयो! वैसे तो दुनिया के अधिकांश देशों ने हमारी व्यावसायिक गतिविधियों को रोकने के लिये पुलिस को आधुनिक संसाधानों से सक्षम कर लिया है। ऐसी स्थिति में मात्र केवल भारत में ही एक आशा की किरण दिखाई देती है। यहाँ का संविधान बड़ा दयालु है, वह हमारे विशाल समाज को पर्याप्त संरक्षण देता है। यहाँ की पुलिस से भी जितने मित्रतापूर्ण सम्बन्ध हमारे हैं उतने और किसी के नहीं हैं। हम सदैव अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे का सहयोग करते रहते हैं। समय आने पर वह हमें जनता से बचाती है। परिणामस्वरूप हम दोनों ही निरन्तर प्रगति कर रहे हैं।यहाँ वकीलों की भी एक बड़ी संख्या है। सौभाग्य से वे भी हमारे सहयोगी हैं। उनकी और हमारी आजीविका का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। वह एक तरह से हमारे अघोषित संरक्षक हैं। मानव अधिकार परिषद जैसी अनेक संस्थायें भी हमारे बचाव में खड़ी रहती हैं। भारत की न्याय पालिका भी हमारे लिये अत्यन्त उदार हृदय वाली हैं। यहाँ चार पाँच प्रकार की निचली और ऊँची सम्माननीय अदालतें होती हैं जो हमारे प्रति अधिक संवेदनशील तो हैं किन्तु कभी कभी कोई अदालत गलती से किसी चोर को सजा सुना देती है तो ऊँची अदालत बिना समय लगाये उस पर रोक लगाकर हमें रिलीफ दे देती है।यहाँ की जनता के हृदय में भी हमारे प्रति बड़ा आदर है। इसीलिये ये हमें नेता चुनने में भी भेदभाव नहीं करती। इन सब के सहयोग से आज भारत में हमारी संख्या लगभग ८० प्रतिशत तक जा पहुँची है। हालांकि जनगणना में चोर व्यवसाय की गणना नहीं की जाती परन्तु यह सभी जानतें कि आज़ादी के बाद हमारी संख्या सर्वाधिक बढ़ी है। अब सही मायने में हम बहुसंख्यक है। वैसे तो भारत की सारी राजनीति हमारे नियंत्रण में ही चल रही है परन्तु फिर भी सीधा सीधा प्रतिनिधित्व कम ही है। अभी संसद में हमारी उपस्थिति मात्र १० प्रतिशत ही हो सकी है। बड़ी मुश्किल से हमारे दो नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुँचे हैं। अभी हमारे एक सम्माननीय विशिष्ट सदस्या को विधान सभा में प्रवेश करने से रोक दिया गया। वह तो अच्छा हुआ कि सौभाग्य से वहाँ महामहिम राज्यपाल एक संविधान की विशेषज्ञ निकली जिन ने एक मिनट में सजा याफ्ता को सीधे मुख्यमंत्री बना दिया। संविधान की रहस्यमयी धाराओं को हर कोई थोड़े ही समझ पाता है। और कोई नासमझ होता तो दूसरों से सलाह मशविरा करने में एक दो दिन देर कर ही देता। इसी प्रकार हमारे एक प्रसिद्ध चारा चोर के पीछे पूरी सी०बी०आई हाथ धोकर पीछे पड़ी है। उसे जेल पहुँचाने की पूरी तैयारी कर ली थी। वह तो भला हो हमारी बड़ी अदालत का जिसने येन वक्त़ पर उसे पूर्ण सुरक्षा प्रदान कर दी ।अरे भाई " मनुष्य का आहार चुराने वाले मुर्गी चोरों और भुट्टे चोरों को पकड़ो तो पकड़ो, पर मुर्गी और सुअरों का चारा चुराने वालों पर इतनी ज्यादती क्यों? भारत एक धर्म निरपेक्ष प्रजातांत्रिक देश है। बहुमत ही इसकी शक्ति है और बहुमत अब हमारे साथ है। बहुजन समाज होने का दाबा भले ही कोई करे लेकिन बहुजन समाज हम चोरों का ही है। कमीं सिर्फ एक मंच बनाने की है। अभी हमारे चोर भाई असंगठित हैं, उन्हें अपनी सही संख्या का पता नहीं है क्योंकि वे सभी अपने अपने काम में व्यस्त रहते हुए केवल अपने ही क्षेत्र में परिचित होते है। उन्हें नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के पश्चात परम्परागत चोरी के अलावा चोरों ने नए नए क्षेत्र विकसित कर लिये है।, जैसे रेलों के विकास के साथ बैगन चोर और कोयला चोरों की संख्या बढ़ी है। इधर लकड़ी चोरों ने अपने कीर्तिमान स्थापित किये हैं। चन्दन चोर वीरप्पन भाई की ही इतनी सेना है कि दो प्रदेश सरकारों को नचा नचा दे रहे हैं। दूसरी तरफ वाहन चोरों का भी एक बड़ा गिरोह सक्रिय है, उधर शक्कर चोर, यूरिया चोर पर्याप्त चर्चा में हैं।कर चोरें और बिजली चोरों ने तो सभी सरकारों की नाक में दम कर रखा है। शासकीय कार्यालयों में कामचोरों की भी कमी नहीं है। धार्मिक स्थानों में मूर्तिचोरों और जूताचोरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। आजकल दिल चुराने वाले मजनुओं की भी संख्या बढ़ती जा रही है। विद्यार्थियों में चिटचोरों के बढ़ते प्रभाव से सारा शिक्षा विभाग अस्त व्यस्त है। इस तरह आप जहाँ भी जायें, चोर ही चोर नजर आएँगे। इसलिये भाइयों अब हमारा ही बहुमत है। यदि हम सब संगठित हो जाएँ तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में हमारा ही पूर्ण वर्चस्व होगा। मैं फिर एक बार आह्वान कर रहा हूँ-............हे दुनिया के चोरों एक हो जाओ.......और गर्व से कहो ................................हम चोर हैं।
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