Saturday, September 05, 2009

बुन्देली लोकगीतों का संस्कृत में अनुवाद

बुन्देली भाषा में सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है उसके लोकगीत । बुन्देली लोकगीतों के माध्यम से यह भाषा लोकजीवन में इतनी घुल मिल गई हे कि समाज का कोई भी उत्सव बिना इन लोकगीतों के अधूरा ही माना जाता है। इन लोकगीतों में जितना माधुर्य है उतना ही भाव सौन्दर्य भी है। इन गीतों में वर्णित लोक संस्कृति से प्रभावित होकर इनको संस्कृत साहित्य में स्थान देने के लिये संस्कृत में अनुवाद किया गया है,जो नेट पर उपलब्ध है। शायद ही कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा हो जिसका अनुवाद संस्कृत में उपलब्ध हो।लेकिन बुन्देली के अनेक लोकगीतों का अनुवाद अत्यन्त लोकप्रिय हुआ है। जैसे,,,
बुन्देली लोकगीत
जौ शहर सुहानों नैंयाँ जी ,
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
स्कूटर मोटर लारी सै वायु प्रदूषण भारी
दम घुटतो धुआँ धुआँ से दिन में लागै अंधियारी,
भाँ मस्त चलै पुरवैया जी,
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
सड़कों पै गन्दी नाली घर घर बीमारी पाली
गन्दगी शहर की सारी नदिया में गटर निकाली
भाँ निर्मल ताल तलैयां जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
कट रए पेड़ सब बढिया गमलों में धरें रुखड़िया
कुछ बचेखुचे सूखे से पौधे हो रये फूलझड़िया
भाँ घनी आम की छैंयाँ जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
कर रये शोरगुल भारी कैसी इनकी मति मारी
कनफोड़ू ढोल ढमाका सुन सुन कै मैं तो हारी
भाँ खड़ी रम्हावै गैया जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
जे छोटे छोटे कमरा ज्यों बन्द कली में भँवरा
दिन रात प्रकृति से दूरी में जी घबरावै हमरा
भाँ सोतई गिनै तरैयां जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
संस्कृतानुवाद
अति नगरमिदं प्रदूषितं मम
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
वाहन धुम्राधिक्येन दिवसेऽपि व्याप्त तमसेन
दुष्करश्वास प्रश्वासाः वायुप्रदूषणानेन
तत्र चलति समीरं प्रचुरतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
दूषितावरुद्ध नालिकाः चिर सुप्ता नगरपालिकाः
मुदिताः खेलन्ति अशुद्धौ दुर्बल बालाश्च बालिकाः
तत्रास्ति सरोवर शुद्धतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
तरुवराः अत्र छिद्यन्ते बहु लताः गृहे विद्यन्ते
शुष्काः रुक्षाश्च दुर्बलाः कुत्रचिद्दरीदृश्यन्ते
तत्राम्रोद्यानं सघनतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
आवासाः प्रकृति विरुद्धाः वायु प्रकाश प्रतिरुद्धाः
एतेषु लघु कक्षेषु प्रभवन्ति प्राण अवरुद्धाः
पश्यन्ति तत्र दिवि नक्षत्रम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।