Sunday, September 26, 2010

भैया जी स्तोत्रम्

तीरथ चारों धाम हमारे भैया जी
कर देते सब काम हमारे भैया जी।

भैया जी का रौब यहाँ पर चलता है
हर अधिकारी भैया जी से पलता है
चाँद निकलता है इनकी परमीशन से
इनकी ही मरजी से सूरज ढ़लता है
दिखते बुद्धूराम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

पाँचों उंगली घी में और मुँह शक्कर में
कोई न टिकता भैया जी की टक्कर में
लिये मोबाइल बैठ कार में फिरते हैं
सुरा सुन्दरी काले धन के चक्कर में
व्यस्त सुबह से शाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

भैया जी के पास व्यक्तिगत सेना है
दुष्ट जनों को रोजगार भी देना है
चन्दा चौथ वसूली खिला जुआँ सट्टा
प्रजातन्त्र किसको क्या लेना देना है
करते न आराम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

फरजी वोट जिधर चाहें डलवा देते
पड़ी जरूरत तुरत लट्ठ चलवा देते
भैया जी चाहें तो अच्छे अच्छों की
पूरी इज्जत मिट्टी में मिलवा देते
कर देते बदनाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

बीच काम में जो भी अटकाता रोड़ा
अपने हिस्से में से दे देते थोड़ा
साम दाम से फिर भी नहीं मानता जो
भैया जी ने उसको कभी नहीं छोड़ा
करते काम तमाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

चोरी डाका बलात्कार या हत्या कर
पहूंच जाइये भैया जी की चौखट पर
नहीं कर सकेगा फिर कोई बाल बांका
भैया जी थाने से ले आयेंगे घर
लेते पूरे दाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

हिन्दू हो मुस्लिम हो या फिर ईसाई
सदा धर्म निरपेक्ष रहें अपने भाई
धन्धे में कुछ भी ना भेद भाव करते
कोई विदेशी हो या कोई सगा भाई
नहीं है नमकहराम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

जो भैया जी स्तोत्र सुबह सायं गाते
सड़क भवन पुलियों का ठेका पा जाते
भक्ति भाव से भेया जी रटते रटते
अन्तकाल में खुद भैया जी बन जाते
इतने शक्तिमान हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

Friday, September 24, 2010

दुःस्वप्न

दुःस्वप्न

राम जाने क्यों हुआ दुःस्वप्न दर्शन
गीदड़ों के सामने हरि का समर्पण
नृत्य मिलकर कर रहे थर सांप नेवले
दे रहे थे गिद्ध बाहर से समर्थन

कुकरमुत्तों का अजूबा संगठन
चुनौती देने लगे लगे वटवृक्ष को
वृक्ष के गुण धर्म की चर्चा नहीं
दिखाते वे महज संख्या पक्ष को

अमावश्या की अंधेरी रात ने
ढ़क लिया था पूर्ण उजले पक्ष को
सूर्य को धिक्कारते बेशर्म जुगनू
मानकर वृह्माण्ड अपने कक्ष को

आक्रमण था तीव्र घोर असत्य का
अनसमर्थित सत्य बेवश हो चला
खो गया फिर स्वयं गहरे अंधेरों में
पर गया कुछ आश के दीपक जला

दृश्य यह ईश्वर करे दुःस्वप्न ही हो
कामना है तिक्त अनुभव क्षणिक होगा
चीरकर गहरे अनिश्चय बादलों को
प्रखर तैजस युक्त भास्कर उदित होगा