Friday, March 09, 2007

समर्थन के प्रकार

समर्थन के प्रकार
आज अपने दरवाजे पर वंश परंपरागत प्रकृत शत्रु पड़ोसी विपन्न बुद्धि को खड़ा देखकर मेरे मन में तरह तरह के कुविचार दूरदर्शन के विज्ञापनों की भाँति एक एक करके आने लगे। उसे 'क्लोजअप टूथपेस्ट` के विज्ञापन के सलीम की तरह बेवजह दाँत निपोरते देख एक बार मन में आया कि एक ही घूँसे में इसे वेदान्ती बना दूँ, पर भला हो भारतीय संस्कारों का जो घर आये नितान्त धूर्त अतिथि को भी दण्डित करने से रोक देते हैं।
मैंने भी 'अतिथि देवो भव` का स्मरण कर अपने आप को संयत करते हुए कहा- "आओ विपन्न बुद्धि! ऐसी कौन सी बुरी सूचना है, जिसे देने तुम अपने पूर्व सम्बन्धों को भूलकर ब्रह्ममुहूर्त में मेरे घर आ खड़े हो।" विपन्न बुद्धि फिल्मी खलनायक की तरह अति आत्म विश्वास के साथ बोला- "मित्र मैं आज कुछ देने नहीं, कुछ माँगने आया हूँ।"
मित्र` और 'माँगने` इन दो शब्दों से किसी अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त मेरा मस्तिक कम्प्यूटर की गति से सोचने लगा। जिस व्यक्ति से दुश्मनी के अलावा कोई संबन्ध ही न रहा हो, वह 'मित्र ` कह रहा है। और जिससे गालियों के अलावा कभी कुछ आदान प्रदान ही न हुआ हो, वह माँग रहा है। अवश्य कोई षड़यन्त्र रचा जा रहा है। "भला मुझसे क्या चाहते हो, विपन्नबुद्धि! "- मैंने अपने आंतरिक भावों को घुटालों की तरह छुपाते हुए कहा।
"मैं तुम्हारा समर्थन माँगने आया हूँ।"- विपन्न बुद्धि दार्शनिक अंदाज में बोला।
"समर्थन?" तुम होश में तो हो?......अरे भाई! वर्षों से हमारी सारी राजनीति एक दूसरे के विरोध पर टिकी है, ऐसे में समर्थन की बात करना , क्या हमारे अस्तित्व को संकट में डालना नहीं होगा?
"जानता हूँ मित्र........पर मरता क्या नहीं करता।" विपन्न बुद्धि कुछ चिन्तित स्वर में बोला।
"तुमने समर्थन देने में जरा भी देरी की तो अस्तित्व तो अपना समाप्त ही समझो"
अपना मतलव, मेरा भी........मैं कुछ सावधान हो गया।
हाँ आपका भी,....हमारा असली मकान मालिक जिसे षड़यन्त्र पूर्वक हमने निर्वासित करके छलपूर्वक पूर्वजों के मकान पर अवैध कब्जा कर रखा है। अब शक्ति संपन्न होकर और संवैधानिक पत्र लेकर आ गया है। अब थोड़ी ही देर में अपना सामान फेंकने ही वाला है। "कुछ उपाय करो विपन्न बुद्धि!" मैंने अपना पसीना पोंछते हुए कहा।
"एक ही उपाय है।"- विपन्न बुद्धि आश्वस्त भाव से कहे जा रहा था।
"हम सब पन्द्रह के पन्द्रह अतिक्रमणकारी सब भेदभाव भूलकर एक हो जाएँ। सभी अपने परिवार, रिश्तेदार और मित्रों के साथ मेरे समर्थन में खड़े हो जाएँ, और मुझे मकान मालिक बना दें तो कुछ समय तक और कब्जा रह सकता है।"
मुझे लगा विपन्न बुद्धि ठीक कह रहा है। कब्जा बनाये रखने के लिए इसके अलावा कोई और उपाय भी तो नहीं है।
मैंने कहा- "विपन्न बुद्धि! मैं तुम्हें समर्थन दूँगा। बताओं कौन से प्रकार का समर्थन चाहते हो?"
"कौन सा प्रकार?....... समर्थन मतलब समर्थन। इसमें प्रकार कहाँ से आ गया।" विपन्न बुद्धि कुछ खीझते हुए बोला।
मैंने उसे समझाने के स्वर में समर्थन के प्रकारों की खेप देते हुए कहा-
समर्थन मुख्यत: पाँच प्रकार का है। मुद्दों पर आधारित समर्थन। इस प्रकार का समर्थन केवल कहने का समर्थन होता है। इसमें समर्थन देने वाला अपनी जरा सी बात न मानने पर ही समर्थन वापस ले सकता है। राजनीति में इस प्रकार के समर्थन का कोई महत्व नहीं होता।
दूसरा प्रकार है आँख मूँदकर समर्थन। इसमें समर्थन देने वाले के हित जब तक पूरे होते रहते हैं, वह समर्थन पाने वाले के दोषों को देखकर भी आँखें बन्द कर लेता है। इस प्रकार का समर्थन पुलिस का अपराधियों के प्रति अक्सर देखा जाता है।
समर्थन का तीसरा प्रकार है (बाहर से समर्थन) इस प्रकार का समर्थन राजनीति में अत्यधिक लोकप्रिय है। यह समर्थन लेने और देने वाले दोनों को ही लाभदायक होता है। बाहर से समर्थन देने वाला भीतर से सामने वाले की जड़ काटता रहता है।
अब जो समर्थन का चौथा प्रकार है। वैसे उसका नाम तो बिना शर्त समर्थन है पर हकीकत में सबसे अधिक शर्तें इसी में होती हैं। इसके अन्तर्गत समर्थन लेने वाला, समर्थन देने वाले की तमाम अच्छी बुरी शर्तें मानने को बाध्य रहता है, और बाहर से खण्डन करता रहता है। प्रेमी के लिए प्रेमिका का समर्थन इसी श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
समर्थन का पाँचवाँ और अन्तिम प्रकार है खुला समर्थन। यह समर्थन अत्यन्त खतरनाक किन्तु असरदार होता है। इस प्रकार का समर्थन राजनीतिज्ञ अपने चमचों और पड़ोसी देश अपने आतंकवादियों को देते हैं।
विपन्न बुद्धि मेरी बातों को सत्य नारायण की कथा की भाँति श्रद्धा पूर्वक सुनता रहा और फिर कुछ सोचते हुए बोला-
"जनाब! आप मुझे बाहर से बिना शर्त समर्थन दीजिए। मुझे आपकी सारी शर्तें स्वीकार हैं।" कहकर चला गया।
०००

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