Tuesday, March 06, 2007

उच्च शिक्षा भयंकरा

उच्च शिक्षा भयंकरा
आज विपन्न बुद्धि अपनी एकमात्र पुत्री के बारहवीं परीक्षा उत्तीर्ण होने पर मिठाई बाँटने के साथ-साथ गुस्से में कुछ बड़बड़ाता भी जा रहा था। मैंने पहली बार किसी को प्रसन्नता और क्रोध एक साथ प्रकट करते हुए देखा था। मुझे लगा विपन्न बुद्धि गीता के 'समत्व योग` का पालन करते हुए ' सुख-दु:खे समे कृत्वा ` का व्यावहारिक प्रदर्शन कर रहा है। किन्तु दु:ख है किस बात का? और यदि है भी तो कुछ आगे पीछे प्रकट किया जा सकता था। मैंने उसे रोकते हुए पूछा- "विपन्न बुद्धि ! पहले यह बताओ, कि तुम अपनी लड़की के पास होने पर प्रसन्न हो या दुखी?"
वह मेरी ओर घूरते हुए गुस्से में बोला- प्रसन्न भी और दुखी भी.........प्रसन्न इसलिए हूँ कि मेरी लड़की सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए भी प्रथम श्रेणी में पास हो गई है, और दुखी इसलिए कि अब वह कॉलेज में एडमीशन लेने की जिद कर रही है। कहती है, 'उच्च शिक्षा प्राप्त करूँगी, ज्ञान प्राप्त करूँगी ।
` .....अब तुम्हीं बताओ ! कॉलेज से ज्ञान का क्या सम्बन्ध ? यदि सचमुच कालेज से ज्ञान मिलता होता तो भारत के प्रत्येक घर में हाथ पर हाथ धरे बैठा तथाकथित ज्ञानी अपने परिवार के लिए सिरदर्द नहीं बनता। अब उसे कौन समझाये कि कालेज में शिक्षा और ज्ञान के अलावा सब कुछ मिलता है। वहाँ इन्ट्रोडक्शन के नाम पर बेशर्मी, रैकिंग के नाम पर यातना , खुलेपन के नाम पर अभद्रता , फ्रेंकनेस के नाम पर सेक्स स्केण्डल , फ्रीडम के नाम पर स्वच्छन्दता, आधुनिकता के नाम पर ऊटपटाँग वेशभूषा , इमेज के नाम पर अकर्मण्यता, मनोरंजन के नाम पर बेहूदा हरकतें , कल्चर के नाम पर अमर्यादित आचरण , जागृति के नाम पर उद्दण्डता , फैशन के नाम पर नग्नता, पुरुषार्थ के नाम पर हत्या और बलात्कार ! क्या नहीं मिलता कॉलेज में?
विपन्न बुद्धि लगभग एक ही साँस में कॉलेज के समस्त गुणों का बखान ऐसे कर गया जैसे कोई औषधि विक्रेता अपनी दवाई का विज्ञापन देता हो।
तुम्हारी बुद्धि सचमुच विपन्न हो गई है विपन्न बुद्धि ! जो तुम हमारे महा पवित्र महाविद्यालय के विषय में ऊल जलूल बातें कह रहे हो। महाविद्यालय तो महान विद्याओं के केन्द्र होते हैं। यहाँ कोई महाविद्वान बनता है तो कोई महा मूर्ख, सारे महारथी यहीं से निकलते हैं महादानी से लेकर महाचोर तक, महा चतुर से लेकर महाधूर्त तक, सारी महान मूर्तियाँ यहीं गढ़ी जाती हैं। 'नो नॉलिज विदाउट कॉलेज` सूक्ति तो तुमने सुनी ही होगी ? सरकार ने अपने बजट का बहुत बड़ा हिस्सा फालतू तो नहीं लगाया ? कुछ न कुछ तो होता ही होगा वहाँ? रही बात उन गुणों की जिन्हें तुम दुर्गुण मान रहे हो।
इक्कीसवीं सदी में जीने के लिए अत्यावश्यक योग्यता है। अब नौकरी के तो कोई चान्स हैं नहीं और व्यापार सँभाल लिया है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने, बची अब कृषि तो उसमें लगती है मेहनत; और पढ़े लिखे लोगों को मेहनत करना बर्जित है। लिहाजा अब एक ही व्यवसाय बच जाता है वह है राजनीति। राजनीति भारत का सर्वश्रेष्ठ लाभप्रद व्यवसाय बन गया है। धीरे धीरे इसका लोक व्यापीकरण भी हो रहा है। अब वह दिल्ली से लेकर गाँव के मुहल्ले तक पहुँच कर खूब फल फूल रहा है। इस व्यवसाय में बुद्धिजीवियो से लेकर गुण्डे, बदमाशों तक, फिल्मी कलाकारों से लेकर संन्यासियों तक सभी को समान अवसर प्राप्त है। और इस व्यवसाय में पूर्ण सफलता के लिए उपर्युक्त गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है। इसीलिए सरकार ने महाविद्यालयों में तोड़ फोड़, हड़ताल प्रदर्शन, मारपीट आदि पाठ्येतर क्रियाकलापों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की है। तुम भी अपनी पुत्री को बेहिचक कालेज में प्रवेश दिलाओ विपन्न बुद्धि। अन्यथा वह इक्कीसवीं सदी में कहीं की नहीं रहेगी।
विपन्न बुद्धि कुछ सोचते हुए बोला मित्र ! कॉलेज में पढ़ने का तो नहीं किन्तु एक बार जाने का मौका मुझे भी मिला है। तभी से कान पकड़ लिए कि भविष्य में ट्रक के नीचे घुस जाऊँ पर कालेज के फाटक के अन्दर नहीं जाऊँगा।
एक बार पड़ोस के लड़के को बुलाने कालेज गया था, वहाँ का हाल देखा तो मुझे लगा कि मैं किसी बहुत गलत जगह आ गया हूँ। कोई जोर जोर से सीटी बजा रहा था, कोई बेहूदा गाने गा रहा था, कोई मुझे देख कर कह रहा था 'तेरा क्या होगा कालिया ?
`। एक दादा किस्म का बड़े-बड़े बालों वाला, जिसे अन्य लड़के सीनियर कह रहे थे। फिल्मी स्टाइल में सिगरेट के छल्ले उड़ा रहा था, और जूनियर छात्रों की पिटाई कर रहा था। मैंने पूछ लिया- " भैया क्यों मारते हो उस लड़के को ? फिर क्या था..........मेरी ऐसी फजीहत हुई कि बताने योग्य नहीं है। तभी से मैं कालेज को उपद्रवियों की भीड़ इकट्ठा करने वाला कारखाना मानता हूँ। उपद्रव तक तो ठीक था पर आजकल तो प्रतिदिन महाविद्यालय परिसरों में हत्या और आत्महत्या के समाचार आ रहे हैं। कुछ दिन पहले एक महाविद्यालय परिसर में कुछ ज्ञानी महापुरुषों ने एक छात्रा को अपनी जीप से कुचल अपने पराक्रम का परिचय दिया था, और अभी हाल में बैतूल से राजधानी में ज्ञान प्राप्त करने गई स्मिता चन्देल की रहस्यमय मृत्यु हो गई। सरकार सिर्फ यह जानने में रुचि रखती है कि हत्या है या आत्म हत्या ? और पुलिस तो आत्महत्या सिद्ध करने में माहिर है ही। अब वह चाहे हत्या हो या आत्महत्या, बेचारे उन माँ बाप के लिए तो बेटी की हत्या ही है न?
ऐसे में तुम ही बताओ मैं अपनी इकलौती बेटी को मौत के मुँह में कैसे ढकेल दूँ।
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