Sunday, May 27, 2012

जनता है ये सब जानती है

जिसको पुलिस नहीं पहिचाने


जिसको न्यायाधीश न जाने

चोर लुटेरे भृष्टाचारी

घूम रहे सब सीना ताने

गफलत में मत रहना ये

सबकी रग रग पहिचानती है

जनता है ये सब जानती है

किसने है ये सड़क बनाई

किसने कितनी करी कमाई

किसने किना डामर खाया

किसने कितनी गिट्टी खाई

किसको कितना मिला कमीशन

किसने केसे दी परमीशन

सौ करोड़ का रोड बन गया

देखो तो इसकी कंडीशन

थोड़ी सी मुट्टी खुदवा दी

ऊपर थोड़ी मुरम बिछा दी

ताबड़ तोड़ चले बुल्डोजर

एक इंच गिट्टी टपका दी

ऐसी कैसी डेमोक्रेशी

जनता की भई ऐसी तैसी

ट्राफिक जाम रहा छः महीने

सड़क रही वैसी की वैसी

अन्दर ज्वाला भड़की

बाहर स्मशान की शान्ति है

किसने जनता को पिटवाया

किसने मुद्दों से भटकाया

किसने गाली दी सन्तों को

किसने लोकपाल लटकाया



किसने खेल खेल में खाया

टू जी स्पेक्ट्रम की माया

राजा को केवल दस प्रतिशत

नब्बे प्रतिशत किसने खाया



किसने किया खजाना खाली

भर दी बैंक विदेशों वाली

किसने किसने जमा रखी है

कितनी कहाँ कमाई काली



एक बार उठ खड़ी हुई तो

नहीं किसी की मानती है

जनता है ये सब जानती है।



आओ बदलें सोच पुरानी

कोउ नृप होय हमें का हानी

उठो क्रान्ति की कलम उठाकर

प्रजातन्त्र की लिखें कहानी



जनता प्रजातन्त्र की रानी

राजा कुँवर भरेंगे पानी

बड़े बड़े तानाशाहों को

पल में याद दिला दी नानी



अब तो तनिक बड़े हो जायें

तेवर जरा कड़े हो जायें

अन्ना रामदेव के पीछे

मिलकर सभी खड़े हो जायें



पहले भ्रष्टाचार मिटायें

सारा पैसा वापस लायें

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई

मिलकर इनको सबक सिखअयें



दिल्ली दे जन्तर मन्तर से

शुरू हो गयी क्रान्ति है

जनता है ये सब जानती है।



Sunday, August 28, 2011

मौसम अभी मचलने वाला है




मौसम अभी मचलने वाला है



सब परिदृश्य बदलने वाला है।



छँटा अंधेरा मुर्गे बोल उठे



सूरज जल्द निकलने वाला है।।



जिसने भी नभ में उड़ने की कोशिश की



जाने क्यों हर शख्श गर्त में चला गया



जिस जिसने भी रामराज्य का नाम लिया



मारीचों की मृगमाया से छला गया



छुपी निशचरी है छाया ग्राही



हनुमत कोई निकलने वाला है।।



अन्धे थे धृतराष्ट्र हो गये बेहरे भी



सुनते नही नहीं पहिचाने चेहरे भी



गान्धारी की आँख बँधी रुई कानों में



हटा लिये सब सत्य न्याय के पेहरे भी



लगता है ये युद्ध महाभारत



और न ज्यादा टलने वाला है।।



सूर्पणखा ने खर दूषण वध करवाया



रावण कुम्भकरण भी फिर मरवाया



कहने भर को राजा बने विभीषण जी



चली सब जगह सूर्पणखा की ही माया



रच डाला सोने का महानगर



धू धूकर अब जलने वाला है।।



चन्दा चमका ले उधार के उजियाले



चमगादड़ जुगनू उलूक भये मतवाले



सब मिलकर के सूरज को धिक्कार रहे



शक्तिमान होने का मन में भ्रम पाले



ग्रहणकाल की बीत गयीं घड़ियां



सूरज आग उगलने वाला है।।



Tuesday, May 10, 2011


जय परशुराम


चारों युग में तेरे अवदानों


से कृतज्ञ यह धरा धाम।


जय परशुराम! जय परशुराम!



रेणुका पुत्र ने सतयुग में


जमदग्नि पिता से शास्त्र लिए।


तप करके घोर विष्णु शिव से


धनु चक्र परशु दिव्यास्त्र लिए ।।


हे ब्रह्मतेजमय शक्ति पुंज


है बारम्बार तुम्हें प्रणाम ,,,,,,


जय परशुराम! जय परशुराम!



अभिमानी सहसबाहु ने जब


जनता पर अत्याचार किया।


अबला ॠषि गो रक्षा करने


तुमने उठकर प्रतिकार किया।।


हे प्रथम क्रान्ति के जन नायक


स्वर गूंज उठा जय परशुराम,,,,,


जय परशुराम! जय परशुराम!



त्रेता में रावण खरदूषण ने


ॠषियों का संहार किया।


तब संस्कृति की रक्षा करने


नारायण ने अवतार लिया।।


जब तुमने सारंग धनुष दिया


तब रावण वध कर सके राम,,,,


जय परशुराम! जय परशुराम!



द्वापर में धर्म बचाने को


बलराम कृष्ण अवतरित हुए।


शिशुपाल कंस दुर्योधन से


सज्जन मानव सब त्रस्त हुए।।


तुम दिये कृष्ण को चक्रसुदर्शन


हल मूसल बलभद्र राम,,,,,


जय परशुराम! जय परशुराम!



कलियुग में भ्रष्टाचार बढ़ा


धन लालच मार बुखार चढ़ा।


सब नैतिकतायें लुप्त हुईं


दीनों पर अत्याचार बढ़ा।।


दो रामदेव को शक्ति प्रभो!


हो दुष्टों का जीना हराम,,,,


जय परशुराम! जय परशुराम!

Wednesday, April 27, 2011



Monday, April 11, 2011


 


बस करो रे बस


आज न चेते तो नहीं चलना


फिर कोनउँ को वश ।



आजादी पाकर खुशियों में हो गये हम मतवाले


घर के रखवंलों ने खुद के घर में डाके डाले।


प्रजातन्त्र की कुल उपलब्धि घपले और घोटाले


धर्म जाति गत भेद भाव के सांप भयंकर पाले।


कर लो बन्द पिटारी वन्द पिटारी वरना,


सब को लेंगे डस,,,,,



साल में आती जाती ये सरकार निठल्ली


अरबों का चूना लगवादे कब कोई जयलल्ली


तीस दलों के घमासान में दल दल हो गयी दिल्ली


सींका कब टूटेगा रस्ता देख रही है बिल्ली


इस दल दल में प्रजातन्त्र की


नैया जाये न धस,,,,,,,



ये जनसंख्या नीति राष्ट्र के हित में कैसे मानें


पढ़े लिखे तो समझे पर दारू कुट्टे क्या जानें


अटलविहारी एक और लालू की नौ सन्तानें


चोर भखारी आतंकी क्यों इसे समस्या मानें ।


एक एक महलों में हो रहे


झुग्गी में दस दस,,,,,,



गलती से अपनाइ निकम्मी मैकाले की शिक्षा


भरी बस्ता हालत खस्ता गाइड नकल परीक्षा


पढ़े लिखे आलसी अनैतिक श्रम के प्रति अनिच्छा


मालिक नहीं सभी की नौकर बन जाने इच्छा।


हो न जाये पूरी नई पीढ़ी


दिशाहीन बेवश,,,,,,,



नेता सारे कंस हो गये जनता बनी सुदामा


राजनीति अपराध जगत ने हाथ परस्पर थामा


सब सरकारी मालपुआ खा खाकर हो रहे गामा


कुछ संसद में पीछे सो रहे कुछ कर रहे हंगामा।


जनता देक बजाये ताली


संसदीय सर्कस,,,,,,,



प्रजातन्त्र की फसल खेत में नेता छुट्टा चर रहे


पढ़े लिखे अधिकारी तुम बैठे बैठे क्या कर रहे


भारत माँ के प्यारे बेटे जाने कैसे मर रहे


भाई भाई मिलजुल कर अपने घर में चोरी कर रहे।


स्वयं बनाये मकड़ जाल में


खुद ही जायें न फस,,,,,,,,,



भारत की ये भोली भाली जनता जब जागेगी


भारत माँ के एक एक पैसे का हिेसाब मांगेगी


सच कहता हूँ मार मार कर शूली पर टांगेगी


आने वाली पीढ़ी तुमको माफ न कर पायेगी।


सिर पर सौ जूते मारेगी


और गिनेगी दस,,,,


बस करो रे बस,,,,,,,



 




Monday, February 07, 2011

ये है टी.व्ही.का ज्ञान


ये है टी.व्ही.का ज्ञान

एक मात्र ही शेष बची है मर्दों की पहचान।
जो सरटेक्स कम्पनी के पहिने चड्डी बनियान।।
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

नये एरियल डिटर्जेन्ट से जो कपड़े धोता है
मेकेनिक से इंजीनियर वहीं तुरन्त होता है
ठंडे का मतलब केवल कोका कोला होता है
जो अन्दर फिट होता है बाहर भी हिट होता है
जो जितने कम कपड़े पहिने विश्वसुन्दरी मान।।
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

आज समूचा भारत पेप्सी पीकर ही जीता है
पहले तो इंसान मगर अब चीता भी पीता है्
तीस रुपट्टी में आजादी मिलती इतनी सस्ती
गुटका खाकर बुड्ढ़ा भी करने लगता मस्ती
वृक्ष लगा उतरो पड़ोस की छत पर सीना तान।।
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

कठिन पुरानी योगक्रिया के चक्कर में मत पड़िये
ले एक्सन के सूज पहनिये रोज हवा में उड़िये
दीवारों पर कभी भूलकर चूना मत वापरिये
लड़की की शादी करना हो विरला व्हाइट करिये
पच्चीस नाइन्टी नाइन लेकर बनये इंसान।.
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

कोई कम्पनी गोविन्दा को बेहूदा नचवाती
कान पकड़कर बिग बी बच्चन को बैठक लगवाती
चाकलेट में हीरोइन कपड़े उतार देती है
गूटका खाओ तो कोइ लड़की पीछे हो लेती है
बुद्धिमान तो खाये चवाजा बुद्धू खाये पान।.
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

सुन्दरियों के वक्षस्थल में मन्त्री जी रहते हैं
जो भी मन्त्री खाते हैं वे ही मन्त्री रहते है
कम्बल साल ओढ़ते जो अपमान सदा सहते है
जो न पहनते लक्स सूट उनको उल्लू कहते हैं
अन्दर की बातें बतलाते सुनो लगाकर कान।।
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

नहीं जानते आप प्यार का रंग लाल होता है
लाल चाय पीने से दिल भी लाल लाल होता है
जहाँ पताका चाय वहाँ का ट्राफिक रुक जाता है
वाह ताज पीने वालों का तबला बज जाता है
दूध तो केवल बिल्ली पीती चाय पियें श्रीमान।।
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

दिन भर जो टी.व्ही देखे तो टी.बी. हो जायेगी
बच्चे होंगे ढ़ेर मगर फिर बीबी खो जायेगी
दुःख भोगने की फिर सारी युक्ति मिल जायेगी
इसी तरह जल्दी जीवन से मुक्ति मिल जायेगी
मिले मुफ्त में उसे नरक में टी.व्ही की दूकान
ये है टी.व्ही.का ज्ञान।।

Friday, November 26, 2010

कुछ न कुछ तो है

दिखा चाँद पर काला धब्बा
कुछ न कुछ तो है
कालिक हे या गहरा गड्ढ़ा
कुछ न कुछ तो है

कालिख हुई तो सबके काले मुख हो जायेंगे
गड्ढ़ा होगा तो फिर ओंधे मुँह गिर जायेंगे
चन्दा चौथ कलंकी हौआ कुछ न कुछ तो है

सत्य उजागर हो जायेगा रानो मत रानो
छिपा गर्भ में सबको दिखता मानो मत मानो
गुड़िया होगी या फिर गुड्डा कुछ न कुछ तो है

सुबह सुबह क्यों चिल्लाते हैं पूछो मुर्गों से
कड़बे सच को सुनना सीखो बड़े बुजुर्गों से
चीख चीख चिल्लाया बुड्ढ़ा कुछ न कुछ तो है

भ्रष्टाचारी चर्चे उछले कोर्ट कचहरी तक
बोल उठी आसन्दी अन्धी गूंगी बहरी तक
मौन रहे क्यों मौनी बब्बा कुछ न कुछ तो है

शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Saturday, October 02, 2010

गाँधीवादी नेता से साक्षात्कार

गाँधीवादी नेता से साक्षात्कार

एक तथाकथित गांधिवादी नेता से हमने पूछा....
गाँधी ने रामराज्य का सपना देखा था..
क्या किया आपने उसके लिये?
वे बोले ...क्या नहीं किया ?
जी जान लगा दी
सपना को सपना रखने के लिये
तुम होते तो
कभी का साकार कर देते
गाँधी के मस्तिष्क की प्रतिमा
धरती पर धर देते
लेकिन हम गाँधीवादी है
सच सच कहेंगे
गाँधी का सपना
सपना ही रहेगा
जब तक हम रहेंगे

हमने कहा...
गाँधी का मूलमन्त्र स्वदेशी है
पर आपके पास तो
बाल..बच्चों को छोड़कर
सब कुछ विदेशी है
और उनका भी क्या भरोसा?
कब बदल जायेंगे?
क्यों कि भाषा,वेशभूषा और आचरण से
पूरे के पूरे विदेशी नजर आयेंगे
और शेष जो है उसे
अपना कैसे सिद्ध कर पायेंगे?
सुनकर नेता जी के खड़े हो गये कान
बोले ..अये ! श्रीमान !
हम विदेशी पूँजी के लिये
पूरे गेट खोल रहे हैं
ऐसे समय में
आप क्या उटपटांग बोल रहे है?
गाँधी के समय सरकार विदेशी थी
तब नारा था स्वदेशी अपनाइये
अब सरकार स्वदेशी है
तो नारा है विदेशी अपनाइये
हम थोड़े ही दिनों में
स्वदेशी और विदेशी का
चक्कर ही खत्म कर देंगे
आपके हर गाँव में
एक विदेशी कम्पनी धर देंगे
हमने कहा....
गांधी का प्रमुख सिद्धान्त था
मन,वाणी और कर्म में एकता
पर क्षमा कीजिये
में आपमें कुछ भी नहीं देखता
वे बोले,,, यदि नहीं दिखता
तो इसका मुझे अफशोश है
पर निश्चित मानिये
यह आपका दृष्टिदोष है
क्योंकि सिद्धान्तों के मामले में
हमें पूरा पूरा होश है
हमने इस सिद्धान्त को
थोड़ा संशोधन के साथ अपनाया है
मन,वाणी और कर्म में
कुछ इस तरह सामंजस्य बनाया है
हम जो सोचते हैं बोलते नहीं
जो बोलते हैं उसे करते नहीं
और जो करते है उसके बारे में सोचते नहीं
है न सिद्धान्त का पालन सही सही?

हमने कहा,,,
कुछ लोग गाँधी को गालियां दे रहे हैं
इसके बारे में आपका क्या विचार है?
बे बोले गालियाँ देना
कुछ लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार है
यही गालियाँ यदि बे हमें देते
तो हम एक मिनिट में मुँह तोड़ देते
पर गाँधी राष्ट्रपिता हैं
इसलिये सुने के अलावा
कोई चारा नहीं है
क्योंकि अपने बाप को गाली देने के मामले में
दंड साहिता में कोई धारा नहीं है


Sunday, September 26, 2010

भैया जी स्तोत्रम्

तीरथ चारों धाम हमारे भैया जी
कर देते सब काम हमारे भैया जी।

भैया जी का रौब यहाँ पर चलता है
हर अधिकारी भैया जी से पलता है
चाँद निकलता है इनकी परमीशन से
इनकी ही मरजी से सूरज ढ़लता है
दिखते बुद्धूराम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

पाँचों उंगली घी में और मुँह शक्कर में
कोई न टिकता भैया जी की टक्कर में
लिये मोबाइल बैठ कार में फिरते हैं
सुरा सुन्दरी काले धन के चक्कर में
व्यस्त सुबह से शाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

भैया जी के पास व्यक्तिगत सेना है
दुष्ट जनों को रोजगार भी देना है
चन्दा चौथ वसूली खिला जुआँ सट्टा
प्रजातन्त्र किसको क्या लेना देना है
करते न आराम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

फरजी वोट जिधर चाहें डलवा देते
पड़ी जरूरत तुरत लट्ठ चलवा देते
भैया जी चाहें तो अच्छे अच्छों की
पूरी इज्जत मिट्टी में मिलवा देते
कर देते बदनाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

बीच काम में जो भी अटकाता रोड़ा
अपने हिस्से में से दे देते थोड़ा
साम दाम से फिर भी नहीं मानता जो
भैया जी ने उसको कभी नहीं छोड़ा
करते काम तमाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

चोरी डाका बलात्कार या हत्या कर
पहूंच जाइये भैया जी की चौखट पर
नहीं कर सकेगा फिर कोई बाल बांका
भैया जी थाने से ले आयेंगे घर
लेते पूरे दाम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

हिन्दू हो मुस्लिम हो या फिर ईसाई
सदा धर्म निरपेक्ष रहें अपने भाई
धन्धे में कुछ भी ना भेद भाव करते
कोई विदेशी हो या कोई सगा भाई
नहीं है नमकहराम हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

जो भैया जी स्तोत्र सुबह सायं गाते
सड़क भवन पुलियों का ठेका पा जाते
भक्ति भाव से भेया जी रटते रटते
अन्तकाल में खुद भैया जी बन जाते
इतने शक्तिमान हमारे भैया जी।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी।।

Friday, September 24, 2010

दुःस्वप्न

दुःस्वप्न

राम जाने क्यों हुआ दुःस्वप्न दर्शन
गीदड़ों के सामने हरि का समर्पण
नृत्य मिलकर कर रहे थर सांप नेवले
दे रहे थे गिद्ध बाहर से समर्थन

कुकरमुत्तों का अजूबा संगठन
चुनौती देने लगे लगे वटवृक्ष को
वृक्ष के गुण धर्म की चर्चा नहीं
दिखाते वे महज संख्या पक्ष को

अमावश्या की अंधेरी रात ने
ढ़क लिया था पूर्ण उजले पक्ष को
सूर्य को धिक्कारते बेशर्म जुगनू
मानकर वृह्माण्ड अपने कक्ष को

आक्रमण था तीव्र घोर असत्य का
अनसमर्थित सत्य बेवश हो चला
खो गया फिर स्वयं गहरे अंधेरों में
पर गया कुछ आश के दीपक जला

दृश्य यह ईश्वर करे दुःस्वप्न ही हो
कामना है तिक्त अनुभव क्षणिक होगा
चीरकर गहरे अनिश्चय बादलों को
प्रखर तैजस युक्त भास्कर उदित होगा

Sunday, August 15, 2010

जय जवान जय किसान जय विज्ञान

युगों युगों से रहा निरन्तर जिसका लक्ष्य महान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान
सीमा की रक्षा करना सैनिक का काम बड़ा है
भारत माँ की रक्षा करने सीना तान खड़ा है
चाहे हिमालय की चोटी हो या फिर रेगिस्तान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

सदियों से किसान ने इस धरती पर स्वेद बहाया
सही मायने में गीता का कर्मयोग अपनाया
हरित् क्रान्ति और श्वेत क्रान्ति से देश बना धनवान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

आर्यभट्ट भाभा कलाम जैसे वैज्ञानिक पाये
पृथ्वी नाग त्रिशूल सरीखे प्रक्षेपास्त्र बनाये
स्वयं किया परमाणु परीक्षण बढ़ा राष्ट्र सम्मान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान
पालन करता है किसान रक्षा जवान करता है
साधन दोनों को सदैव विज्ञान दिया करता है
तत्पर है हर भारतवासी देने को बलिदान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Wednesday, February 03, 2010

आदमी होता चला गया


आदमी होता चला गया
नफरत का भाव ज्यों ज्यों खोता चला गया
मैं रफ्ता रफ्ता आदमी होता चला गया .....
.
फिर हो गया मै प्यार की गंगा से तरबतर
गुजरा जिधर से सबको भिगोता चला गया ....


सोचा हमेशा मुझसे किसी का बुरा न हो
नेकी हुई दरिया में डुबोता चला गया.....


कटुता की सुई लेके खड़े थे जो मेरे मीत
सद् भावना के फूल पिरोता चला गया....


जितना सुना था उतना जमाना बुरा नहीं.
विश्वास अपने आप पर होता चला गया...


अपने से ही बनती है बिगड़ती है ये दुनियां
मैं अपने मन के मैल को धोता चला गया....


उपजाउ दिल हैं बेहद मेरे शहर के लोग
हर दिल में बीज प्यार के बोता चला गया...

शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Saturday, September 05, 2009

बुन्देली लोकगीतों का संस्कृत में अनुवाद

बुन्देली भाषा में सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है उसके लोकगीत । बुन्देली लोकगीतों के माध्यम से यह भाषा लोकजीवन में इतनी घुल मिल गई हे कि समाज का कोई भी उत्सव बिना इन लोकगीतों के अधूरा ही माना जाता है। इन लोकगीतों में जितना माधुर्य है उतना ही भाव सौन्दर्य भी है। इन गीतों में वर्णित लोक संस्कृति से प्रभावित होकर इनको संस्कृत साहित्य में स्थान देने के लिये संस्कृत में अनुवाद किया गया है,जो नेट पर उपलब्ध है। शायद ही कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा हो जिसका अनुवाद संस्कृत में उपलब्ध हो।लेकिन बुन्देली के अनेक लोकगीतों का अनुवाद अत्यन्त लोकप्रिय हुआ है। जैसे,,,
बुन्देली लोकगीत
जौ शहर सुहानों नैंयाँ जी ,
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
स्कूटर मोटर लारी सै वायु प्रदूषण भारी
दम घुटतो धुआँ धुआँ से दिन में लागै अंधियारी,
भाँ मस्त चलै पुरवैया जी,
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
सड़कों पै गन्दी नाली घर घर बीमारी पाली
गन्दगी शहर की सारी नदिया में गटर निकाली
भाँ निर्मल ताल तलैयां जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
कट रए पेड़ सब बढिया गमलों में धरें रुखड़िया
कुछ बचेखुचे सूखे से पौधे हो रये फूलझड़िया
भाँ घनी आम की छैंयाँ जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
कर रये शोरगुल भारी कैसी इनकी मति मारी
कनफोड़ू ढोल ढमाका सुन सुन कै मैं तो हारी
भाँ खड़ी रम्हावै गैया जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
जे छोटे छोटे कमरा ज्यों बन्द कली में भँवरा
दिन रात प्रकृति से दूरी में जी घबरावै हमरा
भाँ सोतई गिनै तरैयां जी
अब गाँव चलो मोरे सैंया।
संस्कृतानुवाद
अति नगरमिदं प्रदूषितं मम
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
वाहन धुम्राधिक्येन दिवसेऽपि व्याप्त तमसेन
दुष्करश्वास प्रश्वासाः वायुप्रदूषणानेन
तत्र चलति समीरं प्रचुरतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
दूषितावरुद्ध नालिकाः चिर सुप्ता नगरपालिकाः
मुदिताः खेलन्ति अशुद्धौ दुर्बल बालाश्च बालिकाः
तत्रास्ति सरोवर शुद्धतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
तरुवराः अत्र छिद्यन्ते बहु लताः गृहे विद्यन्ते
शुष्काः रुक्षाश्च दुर्बलाः कुत्रचिद्दरीदृश्यन्ते
तत्राम्रोद्यानं सघनतमम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।
आवासाः प्रकृति विरुद्धाः वायु प्रकाश प्रतिरुद्धाः
एतेषु लघु कक्षेषु प्रभवन्ति प्राण अवरुद्धाः
पश्यन्ति तत्र दिवि नक्षत्रम्
चल ग्रामं प्रति हे प्रियतम।

Sunday, July 26, 2009

सुख दुख इस जीवन में

मन से ही उत्पन्न हुए हैं
खो जाते हैं मन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
हो मन के अनुकूल
उसे ही सुख कहते हैं
मन से जो प्रतिकूल
उसे ही दुख कहते हैं
गमनागमन किया करते हैं
इच्छा के वाहन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में
सुख फूलों सा मनमोहक
सुन्दर दिखता है
फिर दुख आता हे तो
काँटों सा चुभता है
एक हंसाता एक रुलाता
क्रमशः मन के वन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
अस्तित्व नहीं है

और किसी का कुछ भी
स्थायित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
मिला न तन धन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

Tuesday, May 19, 2009

जल ही जीवन है

जल ही जीवन है
जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस
गन्ध रहित युत शब्द रूप रस
निराकार जल ठोस गैस द्रव
त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस
सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
भूतल में जल सागर गहरा
पर्वत पर हिम बनकर ठहरा
बन कर मेघ वायु मण्डल में
घूम घूम कर देता पहरा
पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
नदी नहर नल झील सरोवर
वापी कूप कुण्ड नद निर्झर
सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का
कल॰॰कल ध्वनि संगीत मनोहर
जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
बादल अमृत सा जल लाता
अपने घर आँगन बरसाता
करते नहीं संग्रहण उसका
तब बह॰बहकर प्रलय मचाता
त्राहि त्राहि करता फिरता ,कितना मूरख मन है।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

धरती माता

धरती माता
धन्य धन्य हे धरती माता
तुमसे ही जग जीवन पाता।.
धन्य धन्य हे धरती माता ।।
पृथिवी धरणी अवनि भू धरा
भूमि रत्नगर्भा वसुन्धरा
गन्धवती क्षिति शस्य श्यामला
जननी विविध नाम विख्याता।।
धन्य धन्य हे धरती माता ।।
अन्न पुष्प फल वृक्ष मनोहर
सरित सरोवर सागर निर्झर
स्वर्ग छोड़ करके ईश्वर भी
तेरी ही गोदी में आता।।
धन्य धन्य हे धरती माता ।।
जल पावक समीर आकाशा
गन्ध रूप रस शब्द स्पर्शा
सब पदार्थ तेरे आँचल में
जो जन जो चाहे पा जाता।
धन्य धन्य हे धरती माता ।।
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Wednesday, April 01, 2009

देख प्रकृति की ओर

देख प्रकृति की ओर
मन रे! देख प्रकृति की ओर।
क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
क्यों उदास है भोर।
देख प्रकृति की ओर।
वायु प्रदूषित नभ मंडल
दूषित नदियों का पानी
क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
बढ़ा अनर्गल शोर
देख प्रकृति की ओर।
कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
मुनि संन्यासी
जंगल में मंगल करते
वे वन्यपशु वनवासी
वन्यपशु नगरों में भटके
वन में डाकू चोर
देख प्रकृति की ओर।
निर्मल जल में औद्योगिक मल
बिल्कुल नहीं बहायें
हम सब अपने जन्मदिवस पर
एक-एक पेड़ लगाएं
पर्यावरण सुरक्षित करने
पालें नियम कठोर
देख प्रकृति की ओर
जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
रहे शरीर सुरक्षित
वैसे पर्यावरण सृष्टि में
सब प्राणी संरक्षित
क्षिति जल पावक गगन वायु में
रहे शांति चहुँ ओर
देख प्रकृति की ओर।

Saturday, March 07, 2009

प्रेमिका और पर्यवेक्षक

प्रेमिका और पर्यवेक्षक

प्रेमी की प्रतीक्षा में
प्रेमिका के तीन मिनिट
परीक्षा हाल में पर्यवेक्षक के तीन घन्टे,
बराबर होते हैं तीन युगों के,
दोनों ही बेचैन, हैरान, परेशान,
घबराता दिल, आफत में जान,

दोनों ही अस्त, व्यस्त, त्रस्त,
बिना काम के अति व्यस्त,

बाहर शान्ति , मन में अशान्ति,
दोनों को अति॰महत्वपूर्ण होने की भ्रान्ति,

किं कर्तव्य विमूढ ,स्थिति शोचनीय,
काम पूरा का पूरा अत्यन्त गोपनीय,

रहते हैं बेकरार
प्रेमिका मिलने को ,
पर्यवेक्षक बिछुड़ने को,
कान खड़े ,चौकन्नी आँखें
लगाते चक्कर ,अगल॰बगल ताकें,

गंभीर मुद्रा , निष्ठुरता का प्रयास
अज्ञात भय ,परस्पर अविश्वास,

चिन्ता होती है॰
प्रमिका को आने वाले कल की
पर्यवेक्षक को नकल की,

बुरा लगता है॰

प्रेमिका को चालू रस्ता
पर्यवेक्षक को उड़न दस्ता,

बहुत सताती है॰
प्रेमिका को तन्हाई
पर्यवेक्षक को जम्हाई,

डर लगता है॰
प्रेमिका को अपने भाई से
पर्यवेक्षक को डी,पी,आई, से,

शिकायत है॰
प्रेमिका को अपने चितचोर से
पर्यवेक्षक को अपने चिटचोर से,

दोनों को रहती है॰
गुप्त पत्रों की तलाश
छुपा कर रखे गये हैं जो
बड़े जतन से वहीं कहीं आसपास,
प्रेमिका को
प्रेमी द्वारा प्रणय निवेदन की अर्जियाँ
पर्यवेक्षक को
गुड़ी माड़ी गाइड की पर्चियाँ,

करें क्या ?
कुछ बंधती नहीं सम्पट
दोनों को किसी के भी देख लेने का संकट,
मिलता है बाद में॰
प्रेमिका को आकाश से तारे तोड़ लाने का आश्वासन
पर्यवेक्षक को दस रुपये का नोट
और केन्द्राध्यक्ष का भाषण,

परीक्षा और प्रेम का स्तर
यदि इसी तरह गिरता जायेगा
तो भविष्य में एक दिन ऐसा भी आयेगा
प्रेमिका और पर्यवेक्षक
ऐसे गायब होंगे कि
जमाना ढूँढता रह जायेगा

Monday, February 02, 2009

देखो बसन्त आ गया

देखो बसन्त आ गया
सुनिये
पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी सिकुड़ी सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।

मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरस बबरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।

शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।

पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
मादक बासन्ती उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।

Saturday, November 29, 2008

हिंसा

हिंसा

हिंसा ही यदि लक्ष्य हो गया जिस मानव का
पाठ अहिंसा का क्या कभी समझ पाएगा
कर हिंसा स्वीकार अहिंसा व्रत का पालन
हिंसा का ही तो परिपोषण कहलाएगा।
***



हिंसा की पीड़ा का अनुभव जिसे नहीं है
वही व्यक्ति तो खुलकर हिंसा कर पाता है
हिंसक मूढ, अहिंसा की भाषा क्या जाने
अपनी ही भाषा में व्यक्ति समझ पाता है।

***




नहीं करूँगा हिंसा और न होने दूँगा
ऍसा सच्चा अहिंसार्थ व्रत लेना होगा
हिंसा के जरिए यदि हिंसा कम होती है
व्यापक अर्थ अहिंसा का अब लेना होगा।

***



युद्ध


सत्य अहिंसा और शान्ति की रक्षा करने
अगर युद्ध भी होता है तो हो जाने दो
मातृभूमि की मर्यादा की रक्षा में यदि
अपना सब कुछ खोता है तो खो जाने दो
नहीं करेंगे इस पर कोई भी समझौता
महाप्रलय भी होता है तो हो जाने दो।

***




डर


दुनिया में जो कौम मौत से डर जाती है
सपने में भी वह सम्मान नहीं पाती है
दीन–हीन श्रीहीन दरिद्र निकम्मी बनकर
अपमानित होकर जीते जी मर जाती है।

***




शान्ति प्रस्ताव


शान्ति भंग करने की जिद जिसने ठानी है
उसे शान्ति– प्रस्ताव सरासर बेमानी है
लातों के देवता बात से नहीं मानते
भय बिन होय न प्रीति नीति हमने जानी है।
***

-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Wednesday, September 10, 2008

साधारण इंसान


साधारण इंसान
सुनिये
मुझको नहीं बनाना दानव और न ही भगवान

मुझे बने रहने दो केवल साधारण इंसान।
दुनियाँ वालो अरे जग वालो
पाऊँ कला कुछ तुम खजूर पर इतना नहीं चढ़ाना
भूल जाऊँ अपनी ज़मीन और सीख जाऊँ इतराना
इतनी नहीं प्रशंसा करना आ जाए अभिमान
मुझे बने रहने दो केवल साधारण इंसान।
दुनियाँ वालो अरे जग वालो
पा जाऊँ कुछ ज्ञान नहीं पूजा की भंग पिलाना
खुद को खुदा समझने के दुष्भ्रम से मुझे बचाना
माला ले पीछे मत पड़ना मत करना सम्मान
मुझे बने रहने दो केवल साधारण इंसान।
दुनियाँ वालो अरे जग वालो
अच्छा लगूँ तो कुछ मत करना अच्छाई ले लेना
बुरा लगूँ तो अपनेपन से मुझे माफ़ कर देना
इतनी भी नफ़रत मत करना बन जाऊँ हैवान
मुझे बने रहने दो केवल साधारण इंसान।
दुनियाँ वालो अरे जग वालो
जो भी हूँ जैसा भी हूँ तुम दर्पण-सा दिखलाना
समझ सकूँ जिस तरह प्यार से कुछ ऐसे समझाना
जैसी की तैसी चादर रख जाऊँ हे भगवान!
मुझे बने रहने दो केवल साधारण इंसान।
दुनियाँ वालो अरे जग वालो

Sunday, August 31, 2008

कोसी को समर्पित

मित्रो यह स्तुति सन् १९९९ में नर्मदा की बाढ़ के समय लिखी थी कोसी को समर्पित कर रहा हूँ आशा है जल्दी शान्त होगी।

सुनिये
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।
ये तेरे विकराल रूप से मच गई ता ता थैया।।

खतरे को एलान सुनो सब निकर निकर के भागे
जित देखो उत पानी पानी महाप्रलय सो लागे।
देखत देखत घरई डूब गओ छत पै चल रई नैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

देख जरा वीरान हो गये ये तेरे तट वाले
भर बारिश में बेघर हो गये खाने के भये लाले
राशन पानी गओ पानी में बह गये नगद रुपैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

डूबे खेत सबई किसान की भई पूरी बरबादी
सड़ गये बिन्डा अब हुइहै कैसे बिटिया की शादी
थालत भैंस कितै बिल्ला गई कितै दुधारू गैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

कछू पेड़ पर सात दिनों से बैठे भूखे प्यासे
डरे डरे सहमे सहमे से बच्चे पूछें माँ से
कहाँ चलो गओ कक्का अपनों कहाँ चलो गओ भैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

हेलीकाप्टर को एरो सुन करके बऊ घबरा रई
कह रई बेटा मोहे लगत है मनों मौत मँडरा रई
सांप देख नत्थू चिल्लानो हाय दैया हाय दैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

अबहिं अबहिं तो भओथो गरमी में गोपाल को गोनों॔
नओ सुहाग को जोड़ा बह गओ और दहेज को सोनो
बाढ़ शिविर में सिमटी सिमटी बैठी नउ दुल्हैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

बुरे फसे पोलिंग आफीसर चिन्ता घर वालों में
डरे रिटर्निंग आफीसर से घुसे नदी नालों में
पीठासीन बागरा पहुंचो पेटी सोन तलैया।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

रात दिना सेवा में लग गये बचे पड़ोसी सारे
विपदा में भी राजनीति दिखला रहे कुछ बेचारे
चार पुड़ी में वोट मांग रहे यै नेता छुटभैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Friday, August 15, 2008

भारतभूमि

भारतभूमि


भारत की भूमि न्यारी स्वर्ग से भी ज्यादा प्यारी
देवता भी जन्म लेना चाहें मेरे देश में।
पर्वतों का राजा यहाँ नदियों की रानी यहाँ
धरती का स्वर्ग काश्मीर मेरे देश में।।
शिवाजी प्रताप चन्द्रशेखर भगतसिंह
लक्ष्मीबाई जैसी नई पीढ़ी मेरे देश में।
भारत महान था ये आज भी महान है
एक सिर्फ व्यवस्था की कमी मेरे देश में।।
2
दुनियाँ की पहली किताब अपने पास में है
अमृतवाणी देवभाषा संस्कृत अपने पास है।
पातञ्जल ध्यान योग गीता ज्ञान कर्मयोग
षटरस छप्पन भोग भी अपने पास है।
आयुर्वेद धनुर्वेद नाट्यवेद अस्त्र शस्त्र
यन्त्र तन्त्र मन्त्र का भी लम्बा इतिहास है
पढ़े लिखे ज्ञानी सब बैठे हैं अँधेरों में और
लालटेनें सभी निरे लल्लुओं के पास हैं।।
3
बढ़े अपराध दिन दूने रात चौगुने हैं
लगी है पुलिस सब चोरों की सुरक्षा में
राष्ट्रनिर्माता ज्ञाता वोटरलिस्ट बनाता
नई पीढ़ी मक्खी मारे बैठी बैठी कक्षा में।
न्यायविद सरेआम बेच रहे संविधान
गुण्डे अपराधियों की खड़े प्रतिरक्षा में
भारत की भोली भाली जनता है आस्तिक
बैठी किसी नये अवतार की प्रतीक्षा मे

4

खेत जिसके पास में है सर्विस की तलाश में है
सर्विस वाले घूमते दूकान की तलाश में।
ग्राहक को ठगने की ताक में दूकानदार
ग्राहक भी उधार लेके खाने के प्रयास में।
बड़े पेट वाले बीमार हैं अधिक खा के
श्रमिक बेचारे खाली पेट उपवास में।
डाकू चोर किन्नर आसीन राजगद्दियों पे
चन्द्रगुप्त चाणक्य गये वनवास में।।

सींकचों के पीछे खड़े जिन्हें होना चाहिये था
ओढ़के मुखौटा आज बैठे हैं सदन में।
गाँधी जी की जय जयकार करके करें भ्रष्टाचार
जयन्ती मनायें एयरकंडीशन भवन में।
सत्य का तो अता नहीं त्याग का भी पता नहीं
मन में वचन में न दिखे आचरण में।
बुद्ध फिरें मारे मारे बुद्धू सारे मजा मारें
प्रबुद्ध युवा बेचारे पड़े उलझन में।।
शास्त्री नित्यगोपअल कटारे

Saturday, August 09, 2008

वर्षा ॠतु आई

सुनिये

जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
तब हम बिल्कुल फालतू थे
इसलिये एक कविता बनाई
और एक बड़े कार्यक्रम में
तबियत से गाकर सुनाई
बदरा घिर आये रुत है भीगी॑ भीगी
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
फिर भी हमने की बेहयाई
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
सावन का महीना पवन करे शोर
जियरा रे ऐंसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर
वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता वाँच रहा है
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
यदि तुझे सचमुच आता है वरसात में मजा
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फस जायेगा
और जरा सा बहका तो
स्कूटर समेत नाली में धस जायेगा
फिर तेरा मन नाच नहीं कूद कूद जायेगा
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
सारी कविता भूल जायेगा
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
सांप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
और कहीं चपेट में आ गये तो
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी
यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
तुम मोर नाचने की बात करते हो
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
जो वाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
अब वरसात की कृपा से
दरवाजे तक आ जाती है
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
हमें पता ही नहीं
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
माना कि वरसात की बूँदें
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
बादलों से भी शिकायत नहीं
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
परन्तु यह हरामजादा छत
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है
अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
घनघोर वारिश में और भी कई दन्द फन्द
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं
न सो पाते हैं
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ